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है । ध्याताको हास्य, कौतूहल, कुटिलता, व्यर्थ बकवाद आदि क्रियाओंका भी त्याग करना चाहिये | ध्यानका आशय मनको एकाग्र करना है, चित्तकी चंचलताको रोकना है । जो व्यक्ति ध्यान करनेकी क्षमता नहीं रखते, वे अपनी कर्म कालिमाको दूर करने में असमर्थ रहते हैं ।
पञ्चम सर्ग २९ पद्य हैं। इसमें ध्यान करने वाले धोगीश्वरोंकी प्रशंसा की गयी है ।
षष्ट सर्ग में ५९ प हैं और इसमें सम्यग्दर्शनका वर्णन आता है । सभ्यदर्शन पापरूपी वृक्षको काटने के लिए कुठार है और पवित्र तीर्थोंमें यही प्रधान है । इसमें सप्ततत्त्व, षट्द्रव्य, नवपदार्थ, पञ्चास्तिकाय आदिका वर्णन
आया है
सप्तम सर्गमें २३ पद्य हैं और सम्यग्ज्ञानका वर्णन है । अष्टम सर्गमें ५९ पद्य और अहिंसा महाव्रतका वर्णन आया है । इसमें सामायिक, छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथास्यातिचारित्रका निर्देश आया है । पञ्चमहाव्रत, पञ्चरामिति और तीन गुप्ति इस प्रकार तेरह प्रकारके चारित्रका कथन किया है। संयमका आधार अहिंसा महावत है। इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है—
असे जगन्माता सेवानन्दपद्धतिः
अहिंसेच गतिः साध्वी श्री रहिसैव शाश्वती ॥
अर्थात् — अहिंसा ही तो जगतकी माता है, क्योंकि समस्त जीवों की प्रतिपालिका है । अहिंसा ही आनन्दकी सन्तति है । अहिंसा ही उत्तम गति और शाश्वती लक्ष्मी है । जगतमें जितने उत्तमोत्तम गुण हैं वे सब इस अहिंसा में
ही है ।
नवम सर्गमें ४२ पद्य हैं और सत्यमहाव्रतका स्वरूप वर्णित हैं । दशमसर्गमें २० पद्य हैं और अस्तेयमहाव्रत्तका स्वरूप निरूपित है। एकादश सर्गमें ४८ पद्य हैं और ब्रह्मचर्यमहाव्रतका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इसमें शरीरसंस्कार, पुष्ट रससेचन, गीत, नृत्य, वादित्रश्रवण, स्त्रीसंसर्ग, स्त्रीसंकल्प, स्त्रीअंगनिरीक्षण आदि दश प्रकारके मंथुनोंके त्यागका भी वर्णन आया है ।
द्वादश सर्गमं ५९ पद्य हैं और ब्रह्मचर्यमहाव्रतके वर्णनसन्दर्भमें स्त्रीस्वरूपका विश्लेषण किया है । त्रयोदश सर्गमें २५ पद्य हैं और कामसेवनके दोष दिखलाये गये हैं । चतुर्दश सर्गमें ४५ पद्य हैं और स्त्रीसंसर्गका निषेध किया है । पञ्चदश सर्गमें ४८ पय हैं और वृद्ध सेवाकी प्रशंसा की गयी है । १. ज्ञानार्णव, सर्ग ८ प ३२ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोधकाचार्य : १५९