________________
नयी सूचनाओके कारण यह प्रशस्ति अधिक उपादेय है । इसमें श्रुतबिन्दुके कर्ता चन्द्रकीनिके बाद कर्मप्रकृति भट्टारक, श्रीपालदेव, उनके शिष्य मतिसागर, प्रशिष्य वादिराजसूरि, हेमसेन, दयापाल, श्रीविजय, कमलभद्र, दयापाल, शान्तिदेव, गुणसेन, अजितसेन और उनके शिष्य मल्लिषेणका उल्लेख आया है | चन्द्रकीति मल्लिाणकी मत्युके २५ वर्ष पहले हुए हों, तो इनका समय वि० संवत्त ११०८के आस-पास आता है । अतएव पद्मप्रभ मलधारिदेवका समय भी ई० सन् ११०३के पूर्व होना चाहिये। ___ नियमसारकी तात्पर्यवृत्तिके प्रारम्भमें और पांचवें अध्यायके अन्तमें वीरनन्दिमुनिकी बन्दना की गयी है। मद्राम प्रान्तके 'पटशिवपुरम्' प्राममें एक स्तम्भपर पश्चिमी चालुक्यराजा त्रिभुवनमल्ल सोमेश्वरदेवके समयका शक सम्वत् ११०७ का एक अभिलेख है । जबकि उसके माण्डलिक निमननमल्ल, भोगदेवचोल्ल हेजरा नगरपर राज्य कर रहे थे। उसीमें यह लिखा है कि जब यह जैनमन्दिर बनवाया गया था, तब श्री पद्मप्रभमलधारिदेव और उनके गरु श्रीबीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती विद्यमान थे। अतएव इन प्रमाणोंके आधारपर पद्मप्रभ मलधारिदेवका समय ई० सन् की १२वीं शताब्दी सिद्ध होता है | __श्री पण्डित नाथूराम प्रेमीका अनुमान है कि पञ्चविंशतिके कर्ता पद्मनन्दि पद्मप्रभ मलधारिदेवसे अभिन्न हैं, क्योंकि दोनोंके गुरु एक हैं। दूसरी बात यह है कि एकत्वसप्तति प्रकरणके अनेक पद्य नियमसार-टीकामें उद्धृत मिलते हैं, पर यह अनुमानमात्र ही है। मलधारि पनप्रभदेव पद्मनन्दिपञ्चविंशत्तिके कर्ता पद्मनन्दिसे भिन्न ही प्रतीत होते हैं । रचनाएँ ___ नियमसारटीकाके साथ पार्श्वनाथ स्तोत्रकी रचना भी इनके द्वारा की गयी है।
नियमसारको टीकामें नियमसारके विषयका ही स्पष्टीकरण किया गया है। सिद्धान्तशास्त्रके मर्मज्ञ विद्वान होनेके कारण टीकामें आये हुए विषयोंका विशद स्पष्टीकरण किया है। पाश्वनाथस्तोश ___ इस स्तोत्रका दूसरा नाम लक्ष्मीस्तोत्र भी इसमें ९ पद्य हैं। अन्तिम पद्यमें कविने अपनेको तर्क, नाटक, व्याकरण और काग्यके कौशलमें विख्यात कहा है तथा अन्तमें लेखकने अपना नाम भी दिया है। स्तोत्रमें पार्श्वनाथके गुणोंकी चर्चा करते हुए उनके मरुभूति और कमठ भवोंकी ओर भी संकेत किया गया है । स्तोत्रमें पार्श्वनाथकी शरीराकृति, गुण उनकी अन्तरंग और बहिरंग लक्ष्मीका वर्णन किया गया है । इस स्तोत्रमें अनुप्रास और पदोंकी चारुता
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १४७