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________________ प्रसरवजित और गात्रमात्रपरिग्रह बताया है। मलवारि यह विशेषण दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायके मुनियोंके साथ जुड़ा हुआ मिलता है। पदमप्रभने अपनी गुरुपरम्परा या गण-गच्छका उल्लेख नहीं किया है। पर इन्होंने अपनी टीकामें जिन ग्रंथकर्ताओं और ग्रन्थोंका उल्लेख किया है उनकी सहायतासे इनके समयपर विचार किया जा सकता है। इन्होंने अपनी टोकामं समन्तभद्र, पूज्यपाद, योगीन्द्रदेव, विद्यानन्द, गुणभद्र, अमृतचन्द्र , सोमदेव पण्डित, वादिराज, महासेन नामके आचार्योका तथा समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, उपासकाध्ययन, अमृताशीति, मार्गप्रकाश, प्रवचनसारव्याख्या, समयसारव्याख्या, पद्मनन्दिपञ्चविशति, तत्त्वानुगासन, श्रुतबिन्दु नामक ग्रन्थोंका उल्लेख किया है। मुद्रित नियमसारको तात्पर्यवृत्तिके पृष्ठ ५३-७३ और ९९में "तथाचोक्तम् गुणभद्रस्वामिभिः" कहकर गुणभद्राचार्यके ग्रन्थोंके उद्धरण दिये हैं। गुणभद्रस्वामीने अपना उत्तरपुराण शक संवत् ८२० ( ई० ८९.८ ) में समाप्त किया था। पष्ठ ८३ पर सोमदेवके यशस्तिलकका एक पद्य उद्धृत मिलता है और यशस्तिलककी समाप्ति शक संवत् ८८१ ( ई० सन्० ९५५ ) में हुई है। टीकाके पृ०६० पर, तथा चोक्तं 'वादिराजदेवैः' लिखकर बादिराजका पद्य दिया है । बादिराजने पाश्वनाथातको महि शक सम्वत् १.४७ ( ई० सन् १०२५ ) में की है। अतएव पद्मप्रभ मलधारिदेवका समय ई० सन् १०२५के पश्चात् होना चाहिए । पष्ठ ६१ में टीकाकारने चन्द्रकीति मनिके मनकी वन्दना की है और प० १४२ में श्रुतबिन्दु नामक ग्रन्थका एक पद्य उद्धृत किया है। श्रवणबेलगोलाकी मल्लिषेणप्रशस्तिमें इन्हीं चन्द्रकीर्तिमुनिका स्मरण किया गया है और उन्हें श्रुतविन्दुग्नन्थका कर्ता भी बताया गया है विश्व यश्रत-बिन्दुनाथरुरुधेभावं कुशाग्रीयया बुध्येवाति-महीयसा प्रवचसा बद्ध गणाधीश्वरः । शिष्यान्प्रत्यनुकम्पया कृशमतीनेदं युगीनान्सुगी स्तं वाचाचत चन्द्रकीति-गणिनं चन्द्राभ-कीत्ति बुधा। यह अभिलेख फाल्गुन कृष्णा तृतीया शक संवत् १०५० ( ई० सन् ११२८ ) का लिखा हआ है। इस दिन मल्लिषेण मुनिने आराधनापूर्वक शरीरत्याग किया था। इसमें गौतमगणधरसे लेकर उस समय तकके अनेक आचार्यों और ग्रंथकर्ताओंकी प्रशस्तियाँ दी गयी हैं । यद्यपि इस अभिलेखमें आचार्योका पूर्वापर सम्बन्ध और गुरु-परम्पराका स्पष्टतः निर्देश नहीं मिलता है, तो भी अनेक १. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ५४, पत्र ३२ । १४६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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