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अद्भुत सौन्दयंका सृजन करती है । यहाँ उदाहरणार्थ एकाध पद्य उद्धृत किया जाता है
लक्ष्मीमहस्तुल्यसती सती सती प्रवृद्धकालो विरतो रतो रत्तो। जरारुजाजन्महता हताहता पाच फणं रामगिरी गिरौ गिरौ ।।
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विवादिताशेषविधिविधिविधिर्वभूव सावहरी हरी हरी। त्रिज्ञानसज्ञानहरो हरोहरो पावं फणे रामगिरी गिरौ गिरी ।।
____ श्रीपद्मप्रभदेवनिर्मितमिदं स्तोत्र जगन्मंगल ॥
आचार्य शुभचन्द्र आचार्य शुभचन्द्रका ज्ञानार्णव या योगप्रदीपनामक ग्रन्थ प्राप्त हैं। ये शुभचन्द्र किस संघ या गण गच्छ थे और इनकी क्या गुरुपरम्परा थी, इसके सन्बन्धमें कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती है । शुभचन्द्र नामके कई आचार्य हुए हैं। एक शुभचन्द्रकी चर्चा श्रवणबेलगोलाके ४३ संख्यक अभिलेखको आयो है, जो गण्डविमक्त मलधारिदेवके शिष्य थे और जिनका स्वर्गवास शक मं० ११८० में हुआ था। द्वितीय शुभचन्द्र देवकीतिके शिष्य थे, जिनका स्वर्गवास वि० सं० १२२० में हआ था और जिनका निर्देश श्रवणबेलगोलाके ३१वें अभिलेखमें आया है।
विश्वभूषण भट्टारकने 'भक्तामरचरित्र' नामक संस्कृतग्रन्थकी उत्थानिका में शुभचन्द्र और भर्तृहरिकी एक लम्बी कथा दी है, जिसके अनुसार शुभचन्द्र तथा भर्तृहरि उज्जयिनीके राजा सिन्धुलके पुत्र थे और सिन्धुलके पैदा होनेके पहले उनके पिता सिंहने मुञ्जको एक मुंजके खेत में पड़े हुए पाकर उसे पाल लिया था । सिंहको बहुत दिनों तक सन्तान न हुई, जिससे वह चिन्तित रहने लगा। एक दिन मन्त्रीने राजाकी चिन्ताको अवगत कर उसे धर्मागवन करनेका परामर्श दिया । राजा सावधान होकर धर्मकृत्योंको सम्पन्न करने लगा।
एक दिन वह रानी और मन्त्रियोंक साथ बन-क्रीड़ाके लिए गया और वहाँ मॅजके खेत में पड़े हुए एक बालकको पाया। उस बालकको देखते ही राजाके हृदयमें प्रेमका संचार हुआ और उसने उठा लिया तथा लाकर रानीको दे दिया रानी उस पुत्रको गोदमे बैठाकर अत्यधिक प्रसन्न हुई। मन्त्रीने राजासे निवेदन किया कि नगरमें चलकर रानीको गढ़गर्भवती घोषित किया जाये और पुत्रो१. पार्श्वनाथस्तोत्र, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, पद्य १,५,९ । १४८ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा