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धारण करता है । उसको समस्त अज्ञानता और कर्मसंस्कार नष्ट हो जाते हैं । सरस्वतीका तेजन दिनकी अपेक्षा करता है न रात की, न अभ्यन्तरकी अपेक्षा करता है न बाह्य को न सन्ताप उत्पन्न करता है और न जड़ता हो । समस्त पदार्थों को प्रकाशित करनेवाला यह तेज अपूर्व है । संसारमें ज्ञानमय दीपक हो सबसे उत्तम है । यह नेववालोंको तो वस्तुदर्शन कराता ही है, पर नेत्रहीनोंको भी वस्तुप्रतीति कराता है । सरस्वती के प्रसादसे हो शास्त्रोंका अध्ययन होता है और वस्तुतत्वकी प्रतीति 1 आचार्यने लिखा है
अपि प्रयाता वशमेकजन्मनि धेनुचिन्तामणिकल्पपादपाः । फलन्ति हि त्वं पुनरत्र वा परे भये कथं तरूपमीयते बुधैः ॥
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त्वमेव तीर्थं शुचिबोधवारिमन् समस्तलोकत्रयशुद्धिकारणम् । त्वमेव चानन्दसमुद्रवर्धने मृगाङ्कमूर्तिः परमार्थदर्शिनम् ॥ १६. स्वयम्भू स्तुति - इस प्रकरणमें २४ पद्म हैं और इनमें क्रमशः २४ तीर्थंकरोंकी स्तुति की गयी है।
१७. सुप्रभाताष्टक - इसमें आठ पद्म हैं। प्रभातकाल होनेपर रात्रिका अन्धकार नष्ट हो जाता है और सूर्यका प्रकाश चारों ओर व्याप्त हो जाता है उस समय जनसमुदायकी निद्रा भंग हो जाती है और नेत्र खुल जाते हैं। ठीक इसी प्रकार से मोहनीय कर्मका क्षय हो जानेसे मोहनिर्मित जड़ता नष्ट हो जाती है तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मोके निर्मूल नष्ट हो जानेसे अनन्तज्ञान, दर्शनका प्रकाश व्याप्त हो जाता है ।
१८. शान्तिनाथस्तोत्र -- इसमें ९ पद्योंमें तीर्थङ्कर शान्तिनाथ की स्तुति की गयी है। प्रसंगवश अष्टप्रातिहार्मो का भी उल्लेख आया है ।
१९. जिनपूजाष्टक - इस प्रकरणमें दश श्लोक हैं और जलचन्दनादि आठ द्रव्योंके द्वारा जिन- भगवान की पूजा किये जाने का वर्णन आया है।
२०. करुणाष्टक - इस प्रकरणमें ८ पद्म हैं और दीनता दिखलाकर जिनेन्द्रदेवसे दयाकी याचना करते हुए संसारसे अपने उद्धारकी प्रार्थना की गयी है ।
२०. क्रियाकाण्डचूलिका - - इस प्रकरणमें १८ श्लोक हैं। आरम्भमें बताया है कि जबतक भोक्षके कारणभूत सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र प्राप्त
१. पद्मनन्दिपञ्चविंशति, पद्य १५।१९ /
२. वही, १५ २४ ।
१३८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा