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________________ I १३. ऋषभ स्तोत्र - इस स्तोत्रमें तीर्थङ्कर ऋषभदेवके इतिवृत्तका निर्देश भी किया है। जब ऋषभदेव सर्वार्थसिद्धिसे च्युत होकर माता मरुदेवी के गर्भ में आनेवाले थे, उसके छः महीने पूर्वसे ही नाभिरायके घरपर रत्न-वृष्टि आरम्भ हो गयी थी । देवोंने आकर मरुदेवीके चरणोंमें नमस्कार किया । जब भगवान ऋषभदेव का जन्म हुआ, तो देवाने पाण्डु- शिलापर ले जाकर उनका अभिषेक किया । भोगभूमिका अन्त होकर कर्मभूमिकी रचना आरम्भ होने लगी थी। कल्पवृक्ष धीरे-धीरे चष्ट होते जा रहे थे । अतः प्रजाजन भूखसे पीड़ित हो ऋषभदेवके पास गये और उन्होंने कृषि आदि कार्योंके करने की शिक्षा दी । ८४ लाख वर्ष पूर्व की आयु ८३ लाख पूर्व बीत जानेपर के एक दिन सभाभवन में सुन्दर सिंहासन के ऊपर स्थित होकर इन्द्रके द्वारा आयोजित नीलाञ्जना अप्सराके नृत्यको देख रहे थे। इसी बीच नीलाञ्जना की आयु क्षीण हो जानेसे वह क्षणभरमें अदृश्य हो गयी । इन्द्रके आदेश से उसके स्थान पर दूसरी नृत्य करने लगी, पर ऋषभदेवकी दिव्यदृष्टि से यह बात ओझल न रह सकी और उन्होंने उस नीलाञ्जनाकी क्षणनश्वरताको देखकर राजलक्ष्मीकी क्षणनश्वरताको अवगत किया । अतएव उन्होंने समस्त राज्यपरिग्रहका त्याग कर दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार तपश्चरण करते हुए एक हजार वर्ष बीत गये और अनुपम समाधि द्वारा चार घातिया कर्मोंको नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया । समदशरण में अष्ट प्रातिहार्यसि सुशोभित तीर्थङ्कर ऋषभदेवने विश्वहितकारी मोक्षमार्गका उपदेश दिया । यह स्तोत्र प्राकृत भाषा में रचित है । १४. जिन-दर्शन- स्तवन- इस स्तबनमें ३४ गाथाएँ हैं और यह भी प्राकृत भाषा में लिखा गया है। आरम्भमें बताया है कि हे जिनेन्द्र ! आपका दर्शन होनेपर मेरे नेत्र सफल हो गये तथा मन और शरीर शीघ्र ही अमृत से सींचे गये समान शान्त हो गये । हे जिनेन्द्र ! आपका दर्शन होनेपर दर्शन में बाधा पहुँचाने वाले समस्त मोहरूप अन्धकार इस प्रकार नष्ट हो गये, जिससे मैंने सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लिया | रागादिविकारोंसे रहित आपके दर्शन से मेरे समस्त पाप नष्ट हो गये । जिस प्रकार सूर्यके उदय होनेपर रात्रिका अन्धकार समाप्त हो जाता है उसी प्रकार आपके दर्शनसे पुण्योदय हो गया है और पापान्धकार नष्ट हो चुका है। आचार्यने जिनदर्शन से प्राप्त होनेवाले सन्तीष, वैभव' सुख, आदिका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। दर्शनके प्रभावसे मोक्षमार्ग की उपलब्धि होती है। 1 1 १५. श्रुतदेवता स्तुति- अधिकारमें ३१ पद्म हैं । इन पद्योंमें सरस्वतीकी स्तुति की गयी है । बताया है, हे सरस्वती ! जो तेरे दोनों चरण-कमल हृदयमें प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १३७
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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