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पूछवालं, सोंगवाले एवं गूंगे इत्यादि बिकृत आकृतिके धारक कुमानुष रहते हैं। इनमें एक अंधाबाले कुमानुष गुफाओंमें रहकर मिट्टीका भोजन करते हैं तथा शेष कुमानु" " फलभोली ड्रोने हैं। इसके त उत्पन्न होनेके कारणोंको बतलाते हुए कहा गया है कि जो प्राणी मन्दकषायी होते हैं, काय-क्लेषसे धर्मफलको चाहने वाले हैं, अज्ञानवश पञ्चाग्नितप करते हैं, सम्यग्दर्शनसे रहित होकर तपश्चरण करते हैं, अभिमानमें चूर होकर साधुओंका अपमान करते हैं, आलोचना नहीं करते, मुनिसंघको छोड़कर एकाकी विहार करते हैं, कलह करते हैं, वे मरकर कुमानुषोंमें उत्पन्न होते हैं।
एकादश उद्देशमें ३६५ गाथाएं हैं। इस उद्देशमें द्वीपसागर, अधोलोक तथा उध्वंलोकका वर्णन आया है। द्वीपसागरोंमें धातकीखण्डद्वीपका वर्णन करते हुए उसका चार लाख योजन प्रमाण विस्तार बतलाया है। इसके दक्षिण और उत्तर भागोंमें दो इष्वाकार पर्वत है, जो लवणसे कालोद समुद्र तक आयत हैं। धातकोखण्डद्वीपके दो विभाग हैं। प्रत्येक विभागमें जम्बूद्वीपके समान, भरतादि सात क्षेत्र और हिमवान् आदि छह कुलपर्वत स्थित हैं। मध्यमें एकएक मेरुपर्वत है। इनमें हिमवनपर्वतका विस्तार २१०५,५/१२ योजन है, महाहिमवनका ८४२१,१११९ योजन और निषषपर्वतका ३३६८४,४/१२ योजन है। आगे नील, रुक्मि और शिखरी पर्वतोंका विस्तार क्रमशः निषध, महाहिमवान और हिमवानके समान है।
घातकीखण्डद्वीपको चारों ओरसे वेष्टित कर कालोदधि स्थित है । इसका विस्तार आठ लाख योजन है। लवण समुद्र के समान अन्तरद्वीप यहाँ भी हैं, जिनमें कूमानुष रहते हैं। इससे आगे १६ हजार योजन विस्तृत पुष्करवरद्वीप है । इसके मध्यमें वलयाकारसे मानुषोत्तरपर्वत स्थित है, जिससे कि इस दीपके दो भाग हो गये हैं। मानुषोत्तर पर्वतके इस ओर पुष्कराचंद्वीपमें स्थित भरतादि क्षेत्रों और हिमवान् आदि पर्वतोंकी रचना घातकीखण्डद्वीपके समान है। यह पर्वतरूद्ध क्षेत्रका प्रमाण ३५५६८४,४/१९ योजन है। पुष्करार्धकी आदिम परिधि ५१७०६०५ योजन, मध्य प्ररिधि ११७००४२७ योजन और बाह्य परिधि १४२३०२४९ योजन है।
जम्बूद्वीपसे लेकर पुष्करापर्यन्त क्षेत्र ढाईद्वीप या मनुष्यक्षेत्रके नामसे प्रसिद्ध है । भानुषोत्तरपवंतसे आगे मनुष्य नहीं पाये जाते । पुष्कवरद्वीपसे आगे पुष्करवरसमुद्र, वारुणिवरद्वीप, वारुणिवरसमुद्र, क्षीरवरद्वीप, क्षीरवरसमुद्र, धृतवरद्वीप और धृतवरसमुद्र आदि असंख्यात द्वीप और समुद्र स्थित हैं । अन्तिम द्वीप और समुद्रका नाम स्वम्भूरमण है । पुष्करखर और स्वम्भूवर द्वीपोंके मध्यमें
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ११९