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________________ I i 1 है । विस्तार इसका ५०० योजन है । वेदिकाके पश्चिममें पद्मा नामका देश है । यह गंगा-सिन्धु नदियों और विजयाधं पर्वतोंके कारण छह खण्डों में विभक्त हो गया। इसकी राजधानी अश्वपुरी है। पद्मा क्षेत्रके आगे पश्चिममें क्रमश: श्रद्धाबतीपर्वत, सुपधादेश, धीरोदानदी, मह्पचादेश, विकटावतीपर्वत, पद्मकावतीदेश, सीतोदानदी, संखादेश, आशीविषपर्वत, नलिनादेश, स्रोतवा हिनीनदी कुमुदादेश सुखावलार्वन और सरिता नामक देश है । इन देशोंकी सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, विरजा, अशोका और विगतशोका राजधानियाँ है । पश्चिममें देवारण्य नामक वन है । इसके उत्तरमें शीतोदा नदीके उत्तर तटपर भी दूसरा देवारण्य है । इसके पूर्व में वप्रादेश, चन्द्रपर्वत, सुवप्रादेश, गम्भीरमालिनीनदी, महावप्रादेश, सूर्यपर्वत, वप्रकावतीदेश, फेनमालिनीनदी, बल्गदेश महानागपर्वत, सुवलगुदेश, उर्मिमालिनीनदो, गन्धिलादेश, देवपर्वत और गन्यमालिनीदेश स्थित हैं । इन देशोंकी विजयपुरी, वैजयन्ती, जयन्ता, अपराजिता, चक्रपुरी, खड़गपुरी, अयुध्या और अवध्या राजधानियाँ हैं। इसके पूर्व में एक वेदी और उसके आगे ५०० योजन जाकर गन्धमादनपर्वत है । इसके पूर्व में ५३००० हजार योजन जाकर माल्यवान पर्वत है । इसके आगे पूर्वमें ५०० योजन जाकर नीलपर्वतके पासमें एक और वेदिका है । नदियोंके किनारे पर स्थित २० वक्षार पर्वत हैं, जिनके उपर जिनभवन बने है । दशम उद्देशमें १०२ गाथाएँ हैं और लवण समुद्रका वर्णन आया है। यह समुद्र जम्बू द्वीपको सब ओरसे घेरकर वलयाकार स्थित है। इसका विस्तार पृथ्वीतलपर दो लाख योजन और मध्यमें दश सहस्र योजन है। गहराई एक हजार योजन है । इसके भीतर तटसे ९५ हजार योजन जाकर पूर्व पश्चिम, दक्षिण और उत्तरमें क्रमशः पाताल, वलयमुख, कदम्बक और यूपकेशरी महापाताल स्थित है । इनका विस्तार मूलमें और ऊपर दश सहस्र योजन है । इनके मध्य विस्तार और ऊँचाई एक लाख प्रमाण योजन है। शुक्लपक्ष और कृष्ण पक्षमें समुद्र की जलवृद्धि और ह्रासका भी वर्णन आया है। दिशा और विदिशागत समस्त पातालोंकी संख्या १००८ है । लवणसमुद्रमें वेदिकासे बयालीस हजार योजन जाकर बेलन्धर देवोंके कोस्तुभ, कौस्तुभभास, उदक, उदकभास, शंख, महाशंख, उदक और उदवास आठ पर्वत हैं । समुद्रकी बेलाको धारण करनेवाले नागकुमार देवोंकी संख्या एक लाख बयालीस हजार है । इनमें बहत्तर हजार देव बाह्यबेलाको बयालीस हजार देव आभ्यन्तर बेलाको और २८ हजार देव जलशिखाको धारण करते हैं । इन देवोंके नगरोंकी संख्या भी एक लाख बयालीस हजार है । यहाँ अन्तरद्वीप २४ हैं । इन द्वीपोंमें एक जंघावाले, ११८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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