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________________ और शूद्र ये तीन ही वर्ण रहते हैं। ६३ शलाकापुरुषोंकी परम्परा यहाँ पायी जाती है । कच्छ विदेहके समान ही महाकच्छा आदि विदेहोंकी भी स्थिति है । कच्छा विदेहके रक्ता-रक्तोदा नदियोंसे अन्तरित मागध, बरतनु और प्रभास नामके तीन द्वीप हैं । दिग्विजयमें प्रवृत्त हुआ चक्रवर्ती प्रथम इन द्वीपोके अधिपति देवोंको अपने अधीन करता है। इसी प्रकारसे दक्षिणकी ओरसे देव, विद्याधरोंको वशमें करके वह विजयाई पर्वतकी गुफामेंसे जाकर उत्तरके म्लेच्छ खण्डोंको भी अपने अधीन करता है। युद्धके अनन्तर चक्रवर्ती यहाँसे अश्व, गज, रल एवं कन्याओंको प्राप्त करता है। इस समय उसे यह अभिमान होता है कि मुझ जैसा प्रतापी चक्रवर्ती इस पृथ्वी पर अन्य कोई नहीं हुआ । अतएव इसी अभिमानसे प्रेरित होकर निज कीर्तिस्तम्भको स्थापित करनेके लिए ऋषभगिरिके निकट जाता है ! हाँ समस्न पर्नतोको हरी गाना नाति नारोंसे व्याप्त देखकर, वह तत्क्षण निर्मद हो जाता है। अन्तमें वह दण्डरलसे एक नामको घिसकर उस स्थान पर अपना नाम लिख देता है और छहों खण्डोंको जीतकर क्षेमा नगरीमें वापस लौटता है। आठवें उद्देशमें १९८ गाथाएं हैं। इसमें पूर्वविदेहका वर्णन आया है और बताया है कि कच्छा देशके पूर्वमें क्रमश: चित्रकूटपर्वत, सुकच्छा देश, ग्रहवती नदी, महाकच्छादेश, पचकूटपर्वत, कच्छकावतीदेश, द्रवतीनदी, आवतीदेश, नलिनकूटपर्वत, मंगलावतोदेश, पंकवतीनदी, पुष्कलादेश, शैलपवंत और महापुष्कलादेश हैं । इसके आगे देवारण्य नामका वन है । उक्त सुकच्छा आदि देशोंकी राजधानियोंके, क्षेमपुरी, अरिष्टनगरी, अरिष्टपुरी, खड्गा, मंजूषा, ओषधि और पुण्डरीकिणी नाम आये हैं। महापुष्कलावती देशके आगे पूर्वमें देवारण्य नामका वन है । इसके आगे दक्षिणमें सीता नदीके तट पर दूसरा देवारण्य वन है। इससे आगे पश्चिम दिशामें वत्सादेश, त्रिकूटपर्वत, सुवत्सा देश, तप्तजला नदी, महावत्सादेश, वेश्रवणकूटपर्वत, वत्सकावतीदेश, मत्तजलानदी, रम्या. देश, अंजनगिरि पर्वत, सुरम्यादेश, उन्मत्तजलानदी, रमणीयादेश, आत्माजनपर्वत और मङ्गलावतीदेश आये हैं। इन देशोंकी सुशीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभंकरा, अंकावती, पद्मावती, शुभा और रत्नसंचया नामको राजधानियाँ हैं । समस्त देश, नदी और पर्वतोंको लम्बाई १६५५२,२२१९ योजन है । नवम उद्देशमें १५७ गायाएं हैं। यहां अपरविदेहका वर्णन करते हुए बतलाया है कि रत्नसंचयपुरके पश्चिममें एक वेदिका और उस वेदिकासे ५०० योजन जाकर सोमनसपर्वत है। यह पर्वत भद्रशालबनके मध्यसे गया है। निषधपर्वतके समीपमें इसकी ऊंचाई ४०० योजन और अवगाह १०० योजन प्रमुखाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ११५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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