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इन उद्धरणोंसे स्पष्ट है कि यत्तिवृषभने चूणिसूत्रोंकी रचना संक्षिप्त शब्दावलीमें प्रस्तुत कर महान अर्थको निबद्ध किया है। यदि आचार्य यतिवृषभ चूर्णिसूत्रोंकी रचना न करते, सो बहुत संभव है कि कसायपाहुडका अर्थ ही स्पष्ट न हो पाता। अत: दिगम्बर परम्परामें चूर्णिसूत्रोंके प्रथम रचयिता होनेके कारण यतिवृषभका अत्यधिक महत्त्व है। चूणिसूत्रकी परिभाषापर षट्खण्डागमको धवलाटोकासे भी प्रकाश पड़ता है। वीरसेन आचायने षट्लण्डागमके सूत्रोंको' भी 'चुण्णिसुत्त' कहा है। यहां उन्हीं सूत्रोंको चूर्णिसूत्र कहा है जो गाथाके व्याख्यानरूप हैं । वेदनाखण्डमें कुछ गाथाएँ भी आती हैं जो व्याख्यानरूप हैं । धवलाकारने उन्हें चूर्णिसूत्र कहा है।
धवलाकारने यतिवृषभाचार्यके घूर्णिसूत्रोंको वृत्तिसूत्र भी कहा है। वृत्तिसूत्रका पूर्वमें लक्षण लिखा जा चुका है। श्वेताम्बर परम्परामें चूर्णिपदको व्याख्या करते हुए लिखा है--
अत्थबहुलं महत्थं हेउ-निवाओवसरगगंभीरं ।
बहुपायमवोच्छिन्नं गय-णयसुद्धं तु चुण्णपयं ।। अर्थात् जिसमें महान् अर्थ हो, हेतु, निपात और उपसर्गसे युक्त हो, गम्भीर हो, अनेकपद समन्वित हो, अव्यवच्छिन्न हो और तथ्यकी दृष्टि से जो धाराप्रवाहिक हो, उसे चूर्णिपद कहते हैं ।
बाशय यह है कि जो तीर्थंकरकी दिव्यध्वनिसे निस्सृत बीजपदोंका अर्थोद्घाटन करने में समर्थ हो वह चूर्णिपद है। यथार्थतः चूर्णिपदोंमें बीजसूत्रोंको विवृत्त्यात्मक सूत्र-रूप रचना की जाती है और तथ्योंको विशेषरूपमें प्रस्तुत किया जाता है।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि श्वेताम्बर परम्पराकी चूणियोंसे इन चूणिसूत्रोंकी बोली और विषयवस्तु बहुत भिन्न है। यतिवृषभ द्वारा विरचित चूर्णिसूत्र कहलाते हैं, चूणियाँ नहीं। इसका अर्थ यह है कि यतिवृषभके चूणिसूत्रोंका महत्त्व 'कसायपाहुड' की गाथाओंसे किसी तरह कम नहीं है। गाथासूत्रोंमें जिन अनेक विषयोंके संकेत उपलब्ध होते हैं, चूर्णिसूत्रोंमें उनका उद्घाटन मिलता है । अतः 'कसायपाहुड' और चूणिसूत्र' दोनों ही आगमविषयकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण है। १. एदस्स गाहामुत्तस्स विवरणमायेण रचिदठवरिमचुण्णिसुप्तादो।
-खण्डामम, पुस्तक १२, पृ० ४१ । २. अभिधान राजेन्द्र, चणपद ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ८१