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अर्थात् चिरंतनाचार्यका व्याख्यान प्रथम पृथ्वीके समान है । चिरन्तनाचार्यका एक अन्य उल्लेख और प्राप्त होता है, जिसमें उन्हें चिरन्तन व्याख्यानाचार्य कहा गया है
" संपहि चिरंतणवक्खाणाइरियाणमयाबहुअं वत्तइस्सामी ।"" इनका समय वप्पदेवाचार्यसे कुछ पूर्वं होना चाहिये। 'कसायपाहुड' पर चूर्णि सूत्रोंके पश्चात् उच्चारणवृत्ति-पद्धति के आधार पर तुम्बलूराचार्यने षट्खण्डागमके प्रारंभिक पाँच खण्डों पर तथा कषायपाहुड' पर ८४००० इलोक प्रमाण चूड़ामणि नामको टीका रची। शामकुण्डाचार्यंने पद्धति नामक टीका १२००० श्लोक प्रमाण लिखी। बताया है
"चतुरविकाशीतिसहस्रग्रन्थरचनाया युक्ताम् | कर्णाटभाषाकृत महती चूडामणि व्याख्याम् ॥' "प्राकृत संस्कृत कर्णाटभाषया पद्धतिः परा रचिता ॥ ३
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चूर्णसूत्रकार यतिवृषभ और उनको रचनाएँ
जयधवला टीका निर्देशानुसार आचार्य यतिवृषभने आर्यमक्षु और नागहस्तिसे कसायपाहुडकी गाथाओं का सम्यक् प्रकार अध्ययनकर अर्थ अवधारण किया और कसायपाहुडपर चूर्णिसूत्रोंकी रचना की। जयधवलामें वृत्तिसूत्रका लक्षण बताते हुए लिखा है
"सुत्तस्सेव विवरणाए संखित्तसद्द यणाए संगहियसुत्तासे सत्याए वित्तिसुत्तववएसादो ।"
अर्थात् जिसकी शब्दरचना संक्षिप्त हो और जिसमें सूत्रगत अशेष अर्थोका संग्रह किया गया हो ऐसे विवरणको वृत्तिसूत्र कहते हैं ।
जयधचलाटीक में अनेकस्थलोंपर यतिवृषभका उल्लेख किया है। लिखा है"एवं जइबसहाइरियदेसामा सियसुत्तत्थपरूवणं काऊण संपहि जइवसहाइग्यिसूचिदत्यमुच्चारणाए भणिस्सामो 1४
अर्थात् यतिवृषभ आचार्य द्वारा लिखे गये चूणिसूत्रोंका अवलम्बन लेकर उक्तार्थ प्रस्तुत किया गया ।
१. जयश्वला भाग १, पृ० ५३२ ।
२. इन्द्रनन्दिश्रुतावतार, पद्म १६६ । ३. वही, पथ १६४ ॥
४. कसायपाहुड, भाग २, १० १४ ।
८० : तोर्थंकर महावीर और उनको आचार्य परम्परा