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८. प्रत्यय-१६ सुत्र ९. स्वामित्व-१५ सूत्र १०. वेदनाविधान–५८ सूत्र ११. गति-१२ सूत्र १२, अनन्तर--११ सूत्र १३. सन्निकर्ष.-३२० सूत्र १४. परिमाण-५३ सूत्र १५. भागाभाग-२१ सुत्र १६. अल्पबहुत्व-२७ सूत्र
वस्तुतः यह वेदना अनुयोगद्वार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । निक्षेप अधिकार में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों द्वारा वेदनाके स्वरूपका स्पष्टीकरण किया गया है। नय अधिकारमें उक्त निक्षेपोंमें कौन-सा अर्थ यहां है, यह नेगम प्रकृत संग्रह आदि नयोंके द्वारा समझाया गया है । नामविधान अधिकारमें नंगमादि नयों के द्वारा ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों में वेदनाको अपेक्षा एकत्व स्थापित किया गया है । द्रावधान अधिकारम को के द्रव्यका उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट, जघन्य, सादि, अनादि स्वरूप समझाया गया है। क्षेत्रविधानसे ज्ञानावरणीयादि आठ कमरूप पुद्गलद्रव्यको वेदना मानकर समुद्घातादि विविध अवस्थाओंमें जीवक प्रदेशक्षत्रको प्ररूपणा की गई है। कालविधान अधिकारमें पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहत्व अनुयोगद्वारमें कालके स्वरूपका विवेचन किया गया है | भावविधानमें पूर्वाक्त पदमीमांसादि तीन अनुयोगों द्वारा ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों की उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट भावात्मक वेदनाओं पर प्रकाश डाला गया है । वेदना प्रत्ययमे नयोंके आश्रय द्वारा वेदभाके कारणोंका विवेचन किया है । वेदना स्वामित्वमें आठों कर्मो के स्वामियों का प्ररूपाग किया है। वेदना वेदन अधिकारमें आठो कर्मों के बध्यमान, उदारणा और उपशान्त स्वरूपोंका एकत्व और अनेकत्वको अपेक्षा कथन किया है । वेदना गतिविधान अनुयागारमें कर्मी की स्थिति, स्थिति अथवा स्थित्यस्थिति अवस्थाओंका निरूपण किया है। अनन्तरविधान अनुयोगद्वारमें कर्मों की अनन्तपरम्परा एवं बन्धप्रकारोंका विचार किया है। कर्मो को वेदना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा किस प्रकार उत्कृष्ट और जघन्य होती है, का विवेचन वेदना सन्निकर्षम किया गया है । वेदना परिमाणविधान अधिकारमें आठों कर्मों की प्रकृत्यर्थता, समयबद्धार्थता और क्षेत्रप्रत्यासकी प्ररूपणा को गई है । भागाभागमें कर्मप्रकृतियोंके भाग और अभागका विवेचन आया है । अल्प
७० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा