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पालित करहाटकके निवासी थे । अतः पुष्पदन्तका भी जन्मस्थान करहाटके आसपास ही होना चाहिए।
वरसेनाचार्यने महिमा नगरी में सम्मिलित हुए दक्षिणापथके आचार्योंके पास अपना पत्र भेजा था, जिसके फलस्वरूप आन्ध्र देशकी वेणा नदीके तटसे पुष्पदन्त और भूतबल उनके पास पहुंचे थे । वर्तमान में सतारा जिलेमें वेष्या नामकी नदी प्रवाहित होती है और उसी जिलेमें महिमानगढ़ नामक ग्राम भी है। बहुत संभव है कि यह ग्राम ही प्राचीन महिमा नगरी रहा हो । अतएव सतारा जिलेका करहाड ही करहाटक हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ।
वनवास देश उत्तर कर्णाटकका प्राचीन नाम है। यहाँ कदम्बवंशके राजाओंकी राजधानी थी। इस बनवास देशमें ही आचार्य पुष्पदन्तने जिनपालितको पढ़ाने के लिए 'बीसदि' सूत्रों की रचना की। और इन सूत्रोंको भूतबलि के पास भेजा । भूतबलिने उन सूत्रोंका अवलोकन किया और यह जानकर कि पुष्पदन्त आचार्यकी अल्या अवशिष्ट है. अत्तः महाकर्म प्रकृतिप्राभृतका विच्छेद न हो जाय, इस भयसे उन्होंने द्रव्यप्रमाणानुगमको आदि लेकर ग्रन्थरचना की । अतएव यह स्पष्ट है कि षट्खण्डागमसिद्धान्तका प्रारंभिक भाग वनवास देशमें रचा गया और शेष ग्रन्थ द्रविड़ देशमें ।
समय-निर्धारण
यह हम पहले ही लिख चुके हैं कि पुष्पदन्त भूतबलिसे आयु में ज्येष्ऽ थे । आचार्य वीरसेनने मंगलाचरण- संदर्भ में भूतबलिसे पूर्व पुष्पदन्तका स्तवन किया है। लिखा है---
पणमामि
पुप्फयंतं दुष्णसंधयार-रवि । भग्ग - सिव- मग्ग-कंटयमिसि समिइ वई सथा दंतं ॥ १
अर्थात् जो पापोंका अन्त करने वाले हैं, कुनयरूप अंधकारके नाश करनेके लिये सूर्य तुल्य है, जिन्होंने मोक्षमार्ग के विघ्नों को नष्ट कर दिया है, जो ऋषियोंकी समिति अर्थात् सभाके अधिपति हैं और जो निरन्तर पञ्चेन्द्रियोंका दमन करने वाले हैं ऐसे पुष्पदन्त आचार्यको मैं प्रणाम करता हूँ ।
उपर्युक्त उद्धरण में 'इसि समिह वई' विचारणीय है। इस पदका अर्थ यह है कि पुष्पदन्त अपने समयके आचार्यों में अत्यन्त मान्य थे और इसीलिये वे मुनिसमिति सभापति कहलाते थे ।
नदिसंघकी प्राकृत - पट्टावलीके अनुसार पुष्पदन्त भूतबलिसे पूर्ववर्ती हैं । १. षट्खण्डागमघव लाटीका, पुस्तक १, पृष्ठ ७, मंगल-गाथा ५ ।
५२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी माचार्य परम्परा