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इस आख्यानमें अन्य कुछ तथ्य हो या न हो, पर इतना यथार्थ है कि पुष्पदन्तका प्रारंभिक नाम कुछ और रहा होगा। पवलाटोकामें भी पुष्पदन्तके नामका उल्लेख करते हुए लिखा है--
"अवरस्स वि भूदेहि पूजिदस्स अत्यवियत्थ-ट्ठिय-दंत-पंतिमोसारिय मूदेहि समीकय-दंसस्स 'पुष्फयंतो' ति णाम कयं ।" ___ अर्थात् देवोंने पूजा कर जिनको अस्तव्यस्त दंतपंकिको दूर कर सुन्दर बना दिया उनको धरसेन भट्टारकने पुष्पदन्त संझा की । स्पष्ट है कि पुष्पदन्त यह आरंभिक नाम नहीं है । गुरुने यह नामद किया है : इक्ष पर शिनको साधुओंके आनेका उल्लेख किया गया है उनके आरंभिक नामोंका कथन नहीं आया है । यह सत्य है कि पुष्पदन्त भी भूत बलिके समान ही प्रतिभाशाली और ग्रन्थ-निर्माणमें पटु हैं।
इन्द्र नन्दिने अपने श्रुतावतारमें लिखा है कि वर्षावास समाप्त कर पुष्पदन्त और भूतबलि दोनोंने ही दक्षिणकी ओर विहार किया। और दोनों करहाटकर पहुंचे। वहाँ उनमेंसे पुष्पदन्त मुनिने अपने भानजे जिनपालितसे भेंट की और उसे दीक्षा देकर अपने साथ ले वनवास देशको चले गये । तथा भूसबलि द्रविड देशकी मधुरा नगरीमें ठहर गये ।
करहाटकको कुछ विद्वानोंने सितारा जिलेका आधुनिक करहाड या कराड और कुछने महाराष्ट्रका कोल्हापुर नगर बतलाया है। करहाटक नगर प्राचीन समयमें बहुत प्रसिज था। स्वामी समन्तभद्र भी इस नगरमें पधारे थे। शिलालेखोंसे ज्ञात होता है कि उस समय यह नगर विद्या और वीरता दोनों के लिए प्रसिद्ध था।
उपर्युक्त चर्चासे एक तथ्य यह प्रसूत होता है कि पुष्पदन्तके भानजे जिन
१. षट्खण्णागमषवलाटीका, प्रथम पुस्तक, पृ०७१. २. जग्मतुरथ करहाटे तयोः स यः पुष्पदन्त नाम मनिः ।
जिनपालिताभिधानं दृष्ट्वाऽसौ भगिनेयं स्त्रं ।। दवा दीक्षां तस्मै तेन सम देशमेत्य वनवासम् । अस्थो भूतबलिरपि मघुरायां द्रविड़देशेऽस्थात् ।।
--श्रुतावतार, पद्य १३२-१३३ ३. प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभट विद्योत्कटं संकटं ।
-मल्लिषेण-प्रशस्ति-शिलालेख ५४ श्लोक ७
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : ५१