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होते: इस प्रकार निश्चय कर उन दोनोंने मंत्रसम्बन्धी व्याकरणशास्त्रके आधारपर उन मन्त्रोंका शोधन किया और मन्त्रोंको शुद्धकर पुनः साधनामें संलग्न हुए। वे देवियाँ पुनः सुन्दर और सौम्य रूपमें प्रस्तुत हुई। सिद्धिके अनन्सर वे दोनों शिष्य गुरुके समक्ष उपस्थित हुए 1 और विनयपूर्वक विद्यासिद्धि सम्बन्धी समस्त वृत्तान्त निवेदित कर दिया। गरु धरसेनाचार्य शिष्योंके ज्ञान से प्रभावित हुए और उन्होंने शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र और शुभ वारमे सिद्धान्तका अध्यापन प्रारंभ किया । ।
धवलग्नथके इस उल्लेखसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि धरसेनाचार्य मन्त्र-तन्त्रके ज्ञाता थे । अत्तः उनका मन्त्रशास्त्रसम्बन्धी 'योनिप्राभुत' ग्रन्थ अवश्य रहा है।
आगमसम्बन्धी ज्ञानके लिए षट्खण्डागम ग्रन्थ ही प्रमाण रूप है। इस ग्रन्थका समस्त विषय उन्होंके द्वारा प्रतिपादित है । पुष्पदन्त और भूतबलिने उनसे ही सिद्धान्तविषयक ज्ञान प्राप्त कर षटखण्डागमके सूत्रोंकी रचना की है।
धवलाटोकासे धरसेनाचार्य के सम्बन्धमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है
१. धरसेन सभी अंग और पूर्वो के एकदेश ज्ञाता थे। २. अष्टांग-महानिमित्तके पारगामी थे। ३. लेखनकलामें प्रवीण थे। ४. मन्त्र-तन्त्र आदि शास्त्रोंके वेत्ता थे। ५. महाकम्मपयडिपाहुडके वेत्ता थे। ६. प्रवचन और शिक्षण देनेकी लामें पटु थे । ७. प्रवचनवत्सल थे। तदा ताणं तेण दो विजाभो दिण्णाओ । तत्थ एया अहिय-खरा, अवरा विहीण. क्वस । एवाओ छटोवबासेण साहेछ सि । तदो ते सिद्धविजा विजा-देवदामो पेच्छंति, एया जरिया अवरया काणिया । एसो देवदाणं सहायो प होदि घि चितिऊण मंत-वायरण-सत्थ-कुसलेहि होणाहिय-वखराण छहणावणयण-विहाणं काऊण पढ़ते हि दो वि देवदाओ सहावरूव-ट्ठियाओ दिवाओं। पुणो तेहि घरसेणभयवंतस्स जहावित्तण विणएण णिवेदिदे सुटु, तुटुंण घरसेण-भहारएण सोम-तिहिणवत्त-वारे गंयो पारतो'
-षट्याण्डागमधवलाटीका, प्रथम पुस्तक, पृ. ७.1 २. जय घरसेणणाही जेण महाकम्मपहिपाहुदसेला ।
बुद्धिसिरेणुद्धारआं समपिओ पुष्फयंतस्स ।।
-धवला
मृतघर और सारस्वताचार्य : ४९