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काल क्रमशः २८वर्ष, २१वषं, १९ वष, ३० वर्ष और २० वर्ष है । इस उल्लेखसे धरसेनका समय स्पष्टतः ई. सन्की प्रथम शताब्दी है।
डा० हीरालालजी जैन, सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, पं० होरालालजी सिद्धान्तशास्त्री आदि भी घरसेनका प्रायः मही समय मानते हैं।
एक अन्य अभिलेखीय प्रमाणसे भी परसेनके समयपर प्रकाश पड़ता है | उपलब्ध पुरातत्त्वके आधारपर कहा जाता है कि आचार्य धरसेन गिरिनगरको जिस गुफामें रहते थे वह गुफा बाबा प्यारा मठके निकट होनी चाहिए। इस गुफामें स्वस्तिक, भद्रासन, नन्दिपद, मीनयुगल और कलशके चिह्न खुदे हुए हैं । एक शिलालेख भी यहाँ प्राप्त हुआ है, जिसमें क्षत्रप नरेश चष्टण और जयदामनके अतिरिक्त गिरिनगरमें देवासुर, नाग, यक्ष, राक्षस, केवलज्ञान, जरामरण, चैत्रशुक्ल पञ्चमी ये सब शब्द भी पढ़े जाते हैं । बीच-बीच में अभिलेखके खण्डित होनेके कारण समस्त लेखका सार बात नहीं किया जा सकता है। जो शब्दावली पढ़ी जा सकती है उसमें उक्त क्षत्रप राजवंशके कालमें किसी बड़े ज्ञानी जैन मुनिके देहत्यागका वृत्तान्त प्रतीत होता है। अभिलेखमें तिथिका निर्देश नहीं है, पर क्षत्रप कालीन राजवंशके साथ सम्बन्ध रहनेसे शककी प्रथम शताब्दी होना चाहिए । डा. ज्योतिप्रसादजीने लिखा है
"The Junagarh Jaina stone inscription, originally discovered in That very Candragupha of giripagar which tradition makes the abode of Dhiarsena, throws intercsting light on the lower limit of the date of these redactors of the canon. The inscription is uudated, but us author is mentioned as the great grandson tof Castana, the grandson of Jayadaman and the son of................... how could the traditon take such a legendary character" __ अर्थात् इस शिलालेखके आधारपर धरसेनका समय ई० सत् १५०के पूर्व होना चाहिये । यतः जयदामनके पुत्र रुद्रदामनका सुप्रसिद्ध संस्कृत-लेख गिरनारकी ऐतिहासिक शिलापर खुदा हुआ शक सं०७२का है । अतएव यह प्रायः संभव है कि उक्त अभिलेख घरसेनके समाधिमरणको स्मृतिमें उस्कीर्ण किया गया हो।
१. The Jaina sources of the History of Ancient India page 112.
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ४७