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गुर्वावलिमें माघनन्दिका नाम आया है । गुर्वावलोके' आरम्भमें भद्रबाहु और उनके शिष्य गुप्तिगुप्तकी वन्दना की गयी है, किन्तु उनके नामके साथ संघ आदिका निर्देश नहीं है । वन्दनाके अनन्तर मूलसंघमें भन्दिसंघ-बलात्कारगणके उत्पन्न होनेके साथ ही माघनन्दिका नाम आया है। बहुत संभव है कि संघभेदव्यवस्थापक अर्हद्बलिने इन्हें ही नन्दिसंघका अग्रणी बनाया हो। माघनन्दिके नामके साथ नन्दिपव भी नन्दिसंघका द्योतक है । गुर्वाधली में धरसेनका निर्देश नहीं है । अतः इस गुर्वावलिके आधारपर यह निश्चितरूपसे नहीं कहा जा सकता है कि धरसेनके गुरु माघनन्दि थे । यह सत्य है कि धरसेन विद्यानुरागी थे और शास्त्राभ्यासमें संलग्न रहने के कारण संघका नायकत्व माघनन्दिके अन्य शिष्य जिनचन्द्रपर पड़ा हो । घरसेनने पुष्पदन्त और भूतबलिको सिद्धान्त-आगमका अध्ययन कराकर अपनी एक नयी परम्परा स्थापित की हो । माघनन्दिका निर्देश जंबुदीवपण्णत्तीमें भी पाया जासा है।
गयरायदोसमोहो सुदसायरपारओ मइपगम्भो ।। तवसंजमसंपण्णो विक्खाओ माधणंदिगुरू ॥ १५४ ।। तस्सेव य वरसिस्सो निम्मलवरणाणचरणसंजुत्तो ।
सम्म सणसुद्धो सिरिणंदिगुरू त्ति विक्खाओ ।। १५६ ॥ उपर्युक्त गुर्वावली और प्रशस्तिसे ध्वनित होता है कि धरसेनके गुरु संभवतः माघनन्दि थे । इन माघनन्दिके सम्बन्धमें एक किंवदंती मी प्रसिद्ध है, जिसमें उन्हें श्रुतका विशेषज्ञ तथा किसी कारणवश चरित्रस्खलनके पश्चात् पुनः दीक्षित होनेका निर्देश किया है। अस्तु, प्राकृतपट्टावली एवं इन्द्रनन्दिके श्रुतावत्तारके आधारपर धरसेनाचार्यके गुरु माघनन्दि और दारा गुरु अहंद्वलि होने चाहिए। समय-निर्णय
नन्दिसंघको प्राकृतपट्टावलीके अनुसार आचार्य धरसेनका समय वीर निर्वाण सं० ६१४के पश्चात् आता है । धरसेनके एक 'जोणिपाहुड' ग्रन्यका उल्लेख बृटिप्पणि नामक सूचीमें आया है। इस ग्रन्थका निर्माण वीर निक १. श्रीमानशेषनरनायकवन्दितानिः श्रीगुप्तिगुप्त इति विश्र तनामधेयः ।
यो भद्रबाहमुनिपुंगवपट्टपासूर्यः स त्रो दिशतु निर्मलसंघवृष्टिम् ।।१।। श्रीमूलसंजनि मन्दिसंघः अस्मिन्बलात्कारगणोऽस्तिरम्यः । तत्राभवत् पूर्वपदांशवेदी नोमाषनन्दोऽमरदेवबंध: ।।२।।
-जन सिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, पृ० ५१. २. जम्ब दीवपणत्ती १३११५४, १५६ । ३. योनिप्राभृतं वोरात् ६०० घारसेनम्, जैन साहित्य संशोधक १,२ (परिशिष्ट)
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ४५