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पूर्व होना चाहिए । इन्द्रनन्दिको गुणघर और धरसेनका पूर्व या उत्तरवत्तित्व ज्ञात्त नहीं है । अतएव उन्होंने स्वयं अपनो असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखा
गुणधरधरसेनान्वयगुर्योः
पूर्वापरक्रमोऽस्माभिः | न ज्ञायते तदन्वयकथकागममुनिजनाभावात् ।। १५१ ।।
अर्थात् गुणवर और धरसेनकी पूर्वापर गुरुपरम्परा हमें ज्ञात नहीं है क्योंकि इसका वृत्तान्त न तो हमें किसी आगममें मिला और न किसी मुनिने हो
बतलाया ।
स्पष्ट है कि इन्द्रनन्दिके समय तक आचार्य गुणधर और घरसेनका पूर्वापरवत्तित्व स्मृतिके गर्भ में विलीन हो चुका था । पर इतना स्पष्ट है कि अलि द्वारा स्थापित संघों में गुणवरसंघका नाम आया है । नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलो में अर्हलिका समय वीर निर्वाण सं० ५६५ अथवा वि० सं० ९५ है । यह स्पष्ट है कि गुणधर अर्हद्वलिके पूर्ववर्ती हैं; पर कितने पूर्ववर्ती हैं, यह निर्णयात्मक रूपसे नहीं कहा जा सकता। याद गुणधरको परम्पराको ख्याति प्राप्त करने में सौ वर्षका समय मान लिया जाय तो 'छवखंडागम' प्रवचनकर्त्ता घरसेनाचार्यसे 'कसा पाहुड' के प्रणेता गुणवराचार्यका समय लगभग दो सौ वर्ष पूर्व सिद्ध हो जाता है । इस प्रकार आचार्य गुणधरका समय वि० पू० प्रथम शताब्दी सिद्ध होता है ।
हमारा यह अनुमान केवल कल्पना पर आधृत नहीं है । अद्धलिके समय तक गुणधरके इतने अनुयायी यति हो चुके थे कि उनके नामपर उन्हें संघकी स्थापना करनी पड़ी । अतएव अद्वलिको अन्य संघोंके समान गुणकर संघका भी मान्यता देनी पड़ी। प्रसिद्धि प्राप्त करते और अनुयायो बनाने में कमसे कम सी वर्षका समय तो लग हो सकता है । अतः गुणधरका समय धरसेनसे कमसे कम दो सौ वर्ष पूर्व अवश्य होना चाहिये ।
इनके गुरु आदिके सम्बन्धमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है । गुणधरने इस ग्रन्थको रचना कर आचार्य नागस्ति और आर्यमक्षुको इसका व्याख्यान किया था । अतएव इनका समय उक्त आचार्योंसे पूर्व है । छनखंडागमके सूत्रोंके अध्ययन से भी यह अवगत होता है कि 'पेज्जदोसपा हुड' का प्रभाव इसके सूत्रों पर हैं । भाषाका दृष्टिसे भा छक्खंडागमकी भाषा कसस्यपाहुडकी भाषाको
१. इन्द्रनन्दि, श्रुतावतार पद्य १५९.
३० : तोर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा