________________ वरइंदणंदिगुरुणो पासे सोळण सयलसिद्धतं / सिरिफणयणंदिगुरुणा सत्तट्ठाणं समुद्दिठं॥ अर्थात् श्री इन्द्रनन्दि गरुके पास समस्त सिद्धान्तको सुनकर श्री कनकनंदि गुरुने इस सत्त्वस्थानको सम्यक् रीति से कहा है / यहाँ कनकनन्दिके साथ गुरु शब्दका संकेत करता है कि नेमिचन्द्रने गोम्मटसारकी रचना कनकनन्दिसे अध्ययन करके की है / और वे उनके गुरु हे होंगे या 'गुरु' नामसे वे अधिक ख्यास होंगे। कनकनन्दि द्वारा रचित 'विस्तरसत्त्वत्रिभंगी' नामक ग्रन्थ जैन सिद्धान्त भवन आरामें वर्तमान है। इस ग्रंथको कागज पर लिखी गयी दो प्रतियां विद्यमान है। दोनोंकी गाथा-संख्यामें अन्तर है 1 एक प्रतिमें 48 गाथा है और दुसरीमें 51 / दूसरी प्रतिमें गाथाओंके साथ संदष्टियां भी उल्लिखित हैं / पहली प्रतिमें तीन पृष्ट है और दूसरीमें सात / / ___ गोम्मटसार कर्मकाण्डमें कनकनन्दि विरचित 'विस्तरसत्वत्रिभंगी'को आदिसे अन्तिम गाथा पर्यन्त सम्मिलित कर लिया गया है। केवल मध्यकी आठ या ग्यारह गाथाएं छोड़ दी गयीं हैं, क्योंकि कर्मकाण्डमें इस प्रकरणकी गाथाओंकी संख्या 358-397 अर्थात् 40 है। इस प्रकरणमें कोंके सस्वस्थानोंका कथन पारमानों में भोले शानिगा है। क्या कनकनन्दि आचार्यले 48 या 51 गाथाप्रमाण 'विस्तरसत्वत्रिभंगी' ग्रंथको पृथक रचना की और बादको उसे नेमिचन्द्रचार्यने अपने गोम्मटसारमें सम्मिलित कर लिया अथवा कर्मकाण्डके लिए ही उन्होंने उसकी रचना की? विचार करने पर ज्ञात होता है कि कनकनंदि सिद्धान्तचक्रवर्तीने इतना छोटासा ग्रंथ नहीं लिखा होगा। उन्होंने कर्मकाण्डके लिखने में सहयोग प्रदान किया होगा और उसीके लिए सत्त्वत्रिभंगीप्रकरण लिखा होगा। इसके पश्चात् उन्होंने कुछ गाथाए” अधिक जोड़कर उसे स्वतन्त्र ग्रंथका रूप प्रदान किया होगा। कर्मकाण्डमें कनकनंदिके मतान्तरको देखनेसे हमारा उक्त कथन पुष्ट होता है। स्पष्ट है कि कनकनंदि अपने समयके प्रसिद्ध आचार्य हैं / ___ इस प्रकार प्राप्त सामग्री के आधारसे श्रुतधराचार्यों और सारस्वताचार्यों का विवेचन किया गया। 1. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला. बम्बई संस्करण, गापा 396 / श्रुतघर और सारस्वताचार्य : 453