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तत्त्वार्थश्लोकवातिकमें भी उनके बदन्यायका निर्देश माया है
कुमारनन्दिनश्चाहुदिन्याविचक्षणाः' । आचार्य विद्यानन्दके उक्त उद्धरणोंसे प्रकट है कि कुमारनन्दि विद्यानन्दके पूर्ववर्ती आचार्य हैं। इन्होंने वादन्यायका प्रणयन किया था, जिसकी कतिपय कारिकाएं विद्यानन्दके अपने ग्रन्थोंमें उद्धृत की हैं।
नागमंगल ताम्रपत्र में भी कुमारनन्दिका उल्लेख आया है, जो श्रीपुरके जिनालयके लिए शक सं०६९८ (वि. सं. ८३३) में लिखा गया है। इसमें चंद्रनंदिके शिष्य कुमारनन्दि, कुमारनन्दिके शिष्य कोतिनन्दि और कोतिनन्दिके शिष्य विमलचन्द्रका उल्लेख है। अतएव नागमंगल ताम्रपत्रमें उल्लिखित कुमारनन्दि यदि प्रस्तुत कुमारनन्दि ही हैं, तो इनका समय वि० सं० की ८ वीं शताब्दी होना चाहिये । ताम्रपत्रकी पंक्तियां निम्नप्रकार है
"अष्टानवत्युत्तरे षट्छतेषु शकवर्षेष्वतोतेष्वारमानः प्रवर्द्धमान-विजयवीर्यसंवत्सरे पंचशसमे प्रवर्त्तमाने मान्यपुरमधिवसत्ति विजयस्कंदावारे श्रीमूलमूलशर्णाभिनंदितनन्दिसंघान्वय एरेगित्तुनाम्नि गणे मूलिकल्पच्छे स्वच्छतरगुणिकिरH)सति-प्रहानिरास लोकः वायरः चन्द्रनन्दिनामगुरुरासीत् । तस्य शिष्यस्समस्तविबुधलोकपरिरक्षण-क्षमात्मशक्तिः परमेश्वरलालनीयमहिमा कुमारवद्विति (ने)य: कुमारनन्दिनाममुनिपतिरभवत् । तस्यान्तेवासि-समधिगत सकलतत्त्वार्थ-समर्पित-बुघसार्ध-सम्पत्सम्पादितकोतिः कीर्तिनन्द्याचार्यों नाम महामुनिस्समजान | तस्य प्रियशिष्य: शिष्यजनकमलाकर-प्रबोधनक: मिथ्याशानसंततसनुतस्वसन्मानान्तक-सद्धर्म-व्योमावभासनभास्करः विमलचन्द्राचार्यस्समुदपादि । तस्य महर्षेर्धर्मोपदेशनया...............२।"
इस ताम्रपत्रमें कुमारनन्दिको समस्त विचल्लोकका परिरक्षक और मुनिपति कहा है। इससे सम्भावना है कि विद्यानन्द द्वारा उल्लिखित और वादन्यायके कर्ता ताकिक कुमारनन्दि का ही इसमें गणकीर्तन है। जो हो, इतना स्पष्ट है कि आचार्य कुमारनन्दि एक प्रभावशाली तार्किक एवं 'वादन्यायविचक्षण' ग्रन्थकार थे।
आचार्य श्रीदत्त तपस्वी और प्रवादियोंके विजेताके रूपमें इनका उल्लेख मिलता है। आदिपुराणमें बताया है१. तत्वार्थश्लोकवार्तिक पृ० २८० । २. पुरातन-जनवाक्य-सूची, प्रस्तावना, पृ० ६७ । ४८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा