SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभाव में संख्याज्ञान कहते हैं। अतएव समूहगत प्रत्येक वस्तुकी पृथक-पृथक जानकारी के अभावमें समूहके मध्य में होनेवाले परिवर्तनका बोध नहीं हो सकता है। समहबोधकी क्षमता और गिनने की क्षमता इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। गिनना सीखनेसे पूर्व मनुष्यने संख्याज्ञान प्राप्त किया होगा । मनुष्यने समहके बीच रहकर संख्याका बोध प्राप्त किया होगा। जब उसे दो समहोंको जोड़ने की आवश्यकता प्रतीत हुई होगी, तो धनचिह्न और धनास्मक संख्याएं प्रादुर्भूत हुई होगी। संख्याज्ञानके अनन्तर मनुष्यने गिनना सीखा और गिनने के फलस्वरूप अंकगणितका आरम्भ हुआ। अंकका महत्व तभी व्यक्त होता है, जब हम कई समूहों में एक संख्याको पाते हैं। इस अवस्थामें उस अंककी भावना हमारे हृदय में वस्तुओंसे पृथक् अंकित हो जाती है और फलस्वरूप हम वस्तुओंका बार-बार नाम न लेकर उनकी सख्याको व्यक्त करते हैं । इस प्रकार त्रिलोकसारमें संख्या, गणना, कृति आदिका स्वरूप निर्धारित किया है। संख्याओंके दो भेद हैं---१. वास्तविक और २. अवास्तविक । वास्तविक संख्याएं भी दो प्रकारको हैं-संगत और असंगत । प्रथम प्रकारको संख्याओंमें भिन्न राशियोंका समह पाया जाता है और द्वितीया पाकी संख्यामोंमें करणीगत राशियां निहित हैं। इन राशियोंके भी असंख्यात भेद हैं । आपायं नेमिचन्द्र के संख्या-भेदोंको निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है (म) जघन्य-परीत-असंभ्यात - स + १ (आ) मध्यम-परीत-असंख्यात - स 'अघुउ (इ) उत्कृष्ट-परीत-असंख्यात = अ य ज--१ (ई) जघन्य-युक्त-असंख्यात = (स उ + १) (स उ+ १) (उ) मध्यम-युक्त-असंख्यात = (स उ+१) (स उ.-१)अयु उ (क) उत्कृष्ट-युक्त-असंख्यात - अ यु उ-क ऊज-१ (क) जघन्य-असंख्यातासंख्यात= (अयुज)२ (ख) मध्यम-असंख्यातासंख्यात - (अ युज) L अ स उ (ग) उत्कृष्ट-असंख्यातासंख्यात अपज १ घवलाटीकामें अनन्तके निम्नलिखित भेद वर्णित हैं (च) नामानन्त-वस्तुके यथार्थतः अनन्त होने या न होनेका विचार किये बिना ही उसका बहुत्व प्रकट करनेके लिए अनन्तका प्रयोग करना नामानन्त है। अतघर और सारस्वताचार्य : ४२९
SR No.090508
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy