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पञ्चसंग्रहमें नहीं मिलता है । पर्याप्तिका कथन पंचसंग्रहमें केवल दो गाथाओंमें आया है 1 किन्तु जीवकाण्डमें यह विषय ११ गाथाओंमें निबद्ध है। प्राणोंका कथन पंचसंग्रहमें छह गाथाओंमें है, पर जीवकाण्डमें यह विषय पांच ही गाथाओंमें आया है। इसी प्रकार संज्ञाओं, स्वामियों, मार्गणाबोंमें जीवों, इन्द्रिय मार्गणाकी अपेक्षा एकेन्द्रिय आदि जीवोंके कथन प्रभृतिमें विशेषताएँ विद्यमान हैं। गोम्मटसार कर्मकाण्ड
गोम्मटसार कर्मकाण्डके दो संस्करण प्राप्त होते हैं। पहला संस्करण रामचन्द्र शास्त्रमाला बम्बईका है और दूसरा देवकरण-शास्त्रमालाका है इस अन्य ९ अधिकार हैं
१. प्रकृतिसमुत्कीर्तन २. बन्धोदयसत्व ३. सत्वस्थानभंग ४. त्रिचूलिका ५. पानसमुत्लीन ६. प्रत्यय ७. भावचूलिका ८. त्रिकरणचूलिका ५. कर्मस्थितिबन्ध
१. प्रकृतिसमुत्कीर्तनका अर्थ है पाठों कर्मो' और उनकी उत्तरप्रकतियोंका कथन जिसमें हो। यतः कर्मकाण्डमें कों और उनको विविध अवस्थाओंका कथन आया है। इसमें जीव और कर्मो के अनादि सम्बन्धका वर्णन कर कर्मा के आठ भेदोंके नाम, उनके कार्य, उनका क्रम और उनकी उत्तर प्रकृतियोंमेंसे कुछ विशेष प्रकृत्तियोंका स्वरूप, बन्धप्रकृतियों, उदयप्रकृतियों और सत्वप्रकृतियोंको संख्या, देशघाती, सर्वघाती पुण्य और पाप प्रकृतियाँ, पुद्गलविपाकी, क्षेत्रविपाको, भविपाको और जीवविपाको प्रकृ. तियाँ, कर्ममें निक्षेप योजना आदिका कथन ८६ गाथाबोंमें किया गया है। २२वीं गाथामें कर्मोके उत्तरभेदोंकी संख्या अंकित की है, किन्तु आगे उन मेदोंको न बतलाकर उनमेंसे कुछ भेदोंके सम्बन्धमें विशेष बातें बतला दो गयी हैं। जैसे दर्शनावरणोयकर्मके ९ मेदोंमेंसे ५ निद्राओंका स्वरूप गाथा २३, २४, और २५ द्वारा बतलाया है । २६वी गाथामें मोहनीयकर्मके एक मेद मिथ्यास्वके तीन भाग कैसे होते हैं, यह बतलाया है । गाथा २७ में नामकर्मके भेदोंमें
४२४ : तीर्थकर महावीर और उनकी बाचार्य-परम्परा