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१.गोम्मटसार २. त्रिलोकसार ३. लब्धिसार
४. क्षपणासार १. गोम्मटसार
यह ग्रन्थ दो भागों विभक्त है-जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड । जीवकाण्ड में ७३४ गाथाएं है और कर्मकाण्डमें ९६२ गाथाएं हैं। इस ग्रन्थपर दो संस्कृत-टीकाए' भी लिखी गयी हैं--१. नेमिचन्द्र द्वारा जीवप्रदीपिका आर २. अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा मन्दप्रबोधिनी । गोम्मटसारपर केशव वर्णी द्वारा एक कन्नड़वृत्ति भो लिखो मिलती है। टोडरमलजीने सम्यग्ज्ञान. चन्द्रिका नामकी वनिका लिखी है।
गोम्मटसार षट्खण्डागमको परम्पराका ग्रन्थ है। जोवकाण्डमें महाकर्म प्राभृतके सिद्धान्तसम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रबन्ध, बन्धस्वामित्व, वेदनाखण्ड और वर्गणाखंड इन पाँच विषयोंका वर्णन है । गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मौदह मार्गणा और उपयोग इन २० प्ररूपणाओंमें जीवको अनेक अवस्थाओंका प्रतिपादन किया गया है।
जीवकाण्डमें जोवोंका कथन किया गया है। बीस प्ररूपणाओंका कथन पंचसंग्रहके समान ही किया गया है । गोम्मटसार संग्रहग्रन्थ है, इसमें सन्देह नहीं । जीवकाण्डका संकलन मुख्यरूपसे पञ्चसंग्रहके जोवसमास अधिकार तथा षदखण्डागम प्रथम खण्ड जीवाणके सत्प्ररूपणानामक अधिकारोंसे किया गया है । धवला ग्रन्थमें पञ्चसंग्रहकी बहुत-सी गाथाएं शाब्दिक अन्तरके साथ मिलती हैं | अतः जीवकाण्डको अधिकांश गाथाएं घबलाटीकामें मिलती हैं। पञ्चसंग्रहकी गाथाओंसे विषयका सम्बन्ध नहीं है ।
पञ्चसंग्रहकी अपेक्षा जीवकाण्डको गाथाओंमें विशेषता भी प्राप्त होती है। पंचसंग्रहमें ३० गाथाओं में ही गुणस्थानोंके स्वरूपोंका निर्धारण किया गया है, जबकि जीवकाण्डमें ६८ गाथाओंमें गुणस्थानोंका स्वरूप वर्णित है । इस ग्रन्थमें २० प्ररूपणाओंका परस्परमें अन्तरभाव सम्बन्धो कथन और प्रमादोंके भंगोंका निरूपण भी पंचसंग्रहकी अपेक्षा विशिष्ट है। पंचसंग्रहमें जीवसमासका कथन केवल ग्यारह गाथाओंमें है, पर जीवकाण्डमें यह विषय ४८ गाथामोंमें निरूपित है । जीयकाण्डमें स्थान, योनि, शरीरको अवगाहना और कुलोंके द्वारा जोवसमासका कथन भी विस्तारपूर्वक आया है। इस प्रकारका विस्तार
श्रुतपर और सारस्वताचार्य : ४२३