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अवेदभागके कुल भंग ३६ + २७ + १८ +९ - १० । सवेद और अवेद भागके कुल भंग २१६ +९० = ३०६ ।
अमितगतिने संस्कृतपञ्चमंग्रह में नवें गणस्थानके अवेद भागमें चार कषाय और ९ योगोंमेंसे एक-एकके उदयकी अपेक्षा ४४९, == ३६ भंग बताये हैं
जघन्यो प्रत्ययो ज्ञेयो द्वाबवेदानिवृत्तिके ।
संज्वालेषु चतुष्की यांगाना नवेक परः ।४।६।। १४१ भंग = ४९ अन्योन्याभ्यस्त करनेपर ४:५३ ४९ = १०८. सवेद भाग 1 यहाँ ४ कषाय, ३ वेद और २ योगोंमेंसे एक-एक योगका उदय होता है। अवेद भाममें
कषायवेदयोगानामैकैकग्रहणे सति ।
अनिवृत्तेः सवेदस्य प्रकृष्टाः प्रत्ययास्त्रयः ||४/६७|| ४१३/९ अन्योन्याभ्यस्त करनेपर १०ः होते हैं।
इस प्रकार अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके सवेदभाग और अवेदभागमें १४४ भंग योगको अपेक्षा मोहनीयके उदयस्थान बतलाये गये हैं। प्राकृतपंचसंग्रहमें भी इतने ही भंग लिये हैं। गोग्नटसार कर्मकाण्डमें भी १४४ ही भंगसंख्या आयी है। यही कारण है कि अमितगतिने सर्वसम्मत १४४ भेदोंको ही मान्यता दी है, शेष भंगोंका उल्लेख नहीं किया।
पञ्चम अध्यायमें भी कई विशेषताएं पायी जाती हैं। प्राकृतपंचसंग्रहमें मनुष्यतिमें नामकर्मके २६०९ भंग बतलाये हैं, पर संस्कृत पत्रसंग्रहमें २६६८ भंग आये हैं। यहाँ २६०९ भंगोंमें सयोगकेवलोके ५९ भंग और जोड़े गये हैं । इसप्रकारके जोड़नेकी प्रक्रिया प्राकृतपंचसंग्रहमें नहीं मिलती है।
प्राकृतपंचसंग्रह और संस्कृतपञ्चसंग्रहमें योगको अपेक्षा गुणस्थानोंमें मोहनीयकर्मके उदयस्थानोंके भग १३२०९ बतलाये हैं और कर्म-काण्डमें छठे १२९५३ भंग आये हैं। इस अन्तरका कारण यह है कि कर्मकाण्डमें छठे गणस्थानमें आहारकका उदय स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयमें नहीं माना गया है। अत: छठे गुणस्थानमें पञ्चसंग्रहकी अपेक्षा २१५२ भंग होते हैं और कर्मकाण्डकी अपेक्षा १८५६ भंग होते हैं । इस प्रकार २५६ भंगका अन्तर पड़ता है। यहाँ यह स्मरणीय है कि अमितगतिमे प्रथम अध्यायके ३४३वें पद्य द्वारा इस बातको स्वीकार किया है कि आहारकऋद्धि, परिहार विशुद्धि, तीर्थंकरप्रकृतिका उदय और मनःपर्ययज्ञान ये स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयमें नहीं होते |
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : ३९९