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है, न धनसे ही किसी प्रकारको शान्ति प्राप्त करता है और न किसी धर्मध्यानका आचरण कर पाता है और न हन्द्रियविषयका सेवन ही कर पाता है । कवि शोक-त्यागके लिए पुनः जोर देता हुआ कहता है
यदि रक्षणमन्यजनस्य भवेद्यदि कोऽपि करोति बुधः स्तवनं । यदि किञ्चन सौख्यमथ स्वतनयीर्यदि कञ्चन तस्य गुणो भवति।। यदि वाऽऽगमनं कुरुतेऽत्र मृतः सगुणं भुवि शोचनमस्य तदा । विगुणं विमना बहु शोचति यो विगुणां स दशां लभते मनुजः ।। यदि शोक करनेसे अन्य व्यक्तिकी रक्षा हो जाग या शोक करनेवाल व्यक्तिको लोग प्रशंसा करे अथवा शोक करनेसे शरीरको सुख प्राप्त हो या शोक करनेसे मत प्राणि जोवित हो जाय, तभी शोक करना उचित कहा जायगा। शोक करनेसे कोई भी गुण तो प्राप्त नहीं होता है बल्कि शोक करनेसे श्रेष्ठ गुणोंका विनाश हो जाता है । अतएव शोक करना निरर्थक है।
इस ग्रन्थमें आध्यात्मिक आचारात्मक और नैतिक तथ्योंकी अभिव्यंजना सुभाषितों द्वारा की गयी है। २. धर्मपरीक्षा
संस्कृत-साहित्यमें व्यंग्यप्रधान यह अपने लंगकी अद्भुत रचना है । इसमें पौराणिक ऊटपटांग कथाओं और मान्यताओंको बड़े ही मनोरञ्जकरूपमें
अविश्वसनीय सिद्ध किया है । सथ्योंकी अभिव्यञ्जनाके लिए कथानकोंका आश्रय लिया गया है। इस ग्रन्थमें निम्नलिखित मान्यताओंकी समीक्षा कथाओं द्वारा की गयी है
१. सृष्टि-उत्पत्तिवाद २. सृष्टि-प्रलयवाद ३. त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु और महेश सम्बन्धी भ्रान्त धारणाएं ४. अन्ध-विश्वास ५. अस्वाभाविक मान्यताएं-अग्निका वीर्यपान, तिलोत्तमाकी उत्पत्ति ६. जातिवाद-सम्भ्रान्त जातिमें उत्पन्न होनेका अहङ्कार ७. ऋषियोंके सम्बन्धमें असम्भव और असंगत मान्यताएं ८. अमानवीय तत्व ९. अविश्वसनीय और अबुद्धिसंगत पौराणिक उपाख्यान
१. सुभाषि०, पद्य ७१८, ७१९ ।
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : ३९३