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होगा। वस्तुत: आचार्यका नाम विष्णुनन्दी है । इसके दोनों शब्द विष्णु और नन्दो संक्षिप्त रूपमें प्रयुक्त हुए हैं। एक स्थानपर 'विष्णु' शब्दका प्रयोग हुआ है और दूसरे पर 'नन्दो' का । श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १०५ में अपराजिसका नाम पहले आया है और नन्दिमित्रका पश्चात् । यह क्रमभंग संभवतः छन्द निर्वाहके लिए किया गया होगा। अन्य सभी ग्रन्थोंमें नन्दिभित्रका पहले नाम आया है और अपराजितका बादमें । __नन्दिसंघको प्राकृत पट्टावलिमें परम्परासे प्राप्त बुद्धिलके स्थानपर बुद्धिलिन नाम आया है। इसी प्रकार गंगदेवके स्थानपर केवल देव नाम प्राप्त होता है । जयपालके स्थानपर जयधवलामें असफल और जम्बदीवपण्णत्तीमें' जसपाल नाम आये हैं। यथार्थतः ये नाम भी एक हो यतिके हैं। ध्रुवसेनके स्थानपर इन्द्रनन्दीके श्रुतायतारमें द्रुमसेन और श्रुतस्कन्धमें घुतसेन नाम मिलते हैं।
आचारांगधारी यशोभद्रके स्थानपर इन्द्रनन्दीके श्रुतावतारमें अभयभद्र नाम आया है । इसी प्रकार यशोबाहुके स्थानपर जयध्वलामें जबाहू; श्रुतावतारमें जयबाहुः नन्दिसंघको प्राकृत पट्टावलि और आदिपुराण में भद्रबाहु नाम आये हैं । संभवतः नन्दिसंघको प्राकृत पट्टावलिके भद्रबाहु द्वितीय हैं।
प्राकृत पट्टाबलिमें तीन केवलियों, पांच श्रुतकेवलियों और ग्यारह दशपूर्वियोंका समय तो क्रमशः ६२ + १०० + १८३ वर्ष बतलाया गया है, जिसका योगफल ३४५ वर्ष आता है। इसके पश्चात् जिन पांच एकादशांगधारियोंका समय अन्यत्र २२० वर्ष बतलाया है, यहां उनका समय १२३ वर्ष ही कहा है । इसके पश्चात् आगे जिन चार आचार्योंको अन्यत्र आचारांगधारी कहा गया है, सन्हें इस पट्टावलीमें १०, ९ और ८ अंगका पारी कहा है तथा इनका समय ११८ वर्षके स्थानमें ९९ वर्ष (२७) कहा है । पट्टावलीकी कालगणनाके अनुसार वीर निर्वाणसे ६२ + १०० + १८३ + १२३ + २४ -४९२ वर्ष के पश्चात् द्वितीय भद्रबाहु हुए। इनका काल २३ वर्ष बसलाया है । गणनानुसार ५२७-४९२ - ३५ अर्थात् ई० सन्से ३५ वर्ष पूर्व द्वितीय भद्रबाह हुए हैं।
पट्टावलीमें 'तदुक्तं विक्रमप्रबन्धे' लिखकर जो दो गाथायें उद्धृत की गयो १. णक्खत्तो जसपालो पंटू वसेण कंसारिओ ।
एमारसंगपारी पंच जणा होति णिहिट्टा ॥ -जम्बूबीवपण्णत्ती १।१६ २. इन्द्रनन्दि अतावतार, सूरत संस्करण, पृष्ठ १३ । ३. सुभद्रश्च यशोमत्रो भत्रबाहमहायशाः। लोहार्यश्चेत्समी ज्ञेयाः प्रथमानाधिपारशः ॥ -महापुराण २ १४९
श्रुतघर और सारस्वतारार्य : २१