________________
अभिलेख नं० १०५ और इन्द्रनन्दि श्रुतावतार में सुधर्म स्वामीका नाम उपलब्ष होता है।
जयघवलामें भी लोहाचार्यके स्थान पर सुधर्म स्वामीका ही नाम माता है । अतः यहाँ यह आशङ्का उत्पन्न होती है कि लोहाचार्य और सुघमं स्वामी एक ही व्यक्ति है अथवा भिन्न-भिन्न ? इस शङ्काका समाधान जंबुदावपण तीसे हो जाता है। बताया है
तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण य सुघम्मणामेण । गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिहं ॥ १०॥ चरमलबुद्धिसहिदे तिष्णदे गणधरे गुणसमग्गे 1 केवलणाणपवे सिद्धि मसामि ॥११॥ पत्ते
अर्थात् गौतम गणधरने लोहायंको और सोहायने जंबुस्वामोको उपदेश दिया। ये तीनों केवली निर्मल बुद्धियोंसे सहित गुणोंसे परिपूर्ण और सिद्धिको प्राप्त थे । लोहार्य का अपर नाम सुधर्म स्वामी था । अतः लोहाचार्य और सुषमंस्वामी दोनों एक ही व्यक्ति हैं, भिन्न नहीं ।
इसी प्रकार विशु जाता है। प्राकृत पट्टावल और महावीरकी शिष्यपरम्परामें विष्णु के नामका उल्लेख आया है। पर जंबूदीवपणती और तिलोयपण्णत्तीमें इस स्थान पर नन्दी या नन्दीमुनि नाम मिलता है। जंददीवपण्णत्तीमें लिखा है-
गंदी य मंदिभित्तो अवराजिदमुनिवरो महातेओ । गोणी महत्या महागुणो भद्दवाह य ॥ तिलोयपण्णत्ती में बताया है
*
दीय दिमित्तो बिदिओ अबराजिदो तइज्जो य । गोवद्धणो चउत्यो पंचमओ भद्दबाहु ति ॥ उक्त उद्धरणों से यह ज्ञात होता है कि विष्णुका ही ४. सिद्धि गते वीर जिने नुबद्ध केवल्य भिस्यास्त्रय एवं जाताः । श्रीमती म सुधर्मजम्बू यैः केवली वे सहानुजम् ॥
१. अंबुबीयपण्णत्ती १११०-११
२. जंबुदीवपण्णी १।१२
३. तिलोयपण्णत्ती ४।१४८२
२० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
अपर नाम नंदी रहा
- जैन शिलालेखसंग्रह प्रथम भाग, अभिलेख - १०५ ।
―