________________
यहाँ लोहाचार्यंका समय ५२ वर्षके स्थान पर ९० वर्ष होना चाहिए । इस प्रकार ९९ – २ = ९७ वर्ष अष्टम, नत्रम और दशम अङ्गषारो आचार्योंका काल है । अनन्तर एकांगधारी पांच आचार्योंका समय ११८ वर्ष है । यथा(१) वीर निर्वाण संवत् ५६५ अबलि २८ वर्षे
(२)
५९ ३ माघनन्दि २१ वर्ष
(३)
६० घरसेन
१५
(४)
(५)
13
"
"
१.
37
נו
..
".
13
"
"
1t
"
६३३ पुष्पदन्त ६६३ भूतबलि
३०
נו
11
२० वर्ष
११८ वर्ष
-
इस प्रकार इस पट्टावली के अनुसार अङ्गपरम्पराका कुल काल६२ + १०० + १८३ + १२३ + ९७ ११८ - ६८३ वर्ष है ।
इन्द्रनन्दिके श्रुतावतार, जिनसेनके हरिवंश पुराण, यतिवृषभकी तिलोयपणती एवं वीरसेनकी धवला टीकामें आचार्यों की जो पट्टावलो दो गयी है उसमें लोहाचार्य तक ६८३ वर्ष गिनाये हैं, पर इस पट्टावली में महंदवली, माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलिका ११८ वर्षका समय सम्मिलित है । महावीरकी जो शिष्य परम्परा अन्यत्र प्राप्त होती है उसमें गौतम, लोहाचार्यं और जम्बूस्वामो ये तीन केवली, विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु — ये पांच श्रुतकेवली; विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिलिङ्ग, देव और धर्मसेन – ये ११ दशपूर्वके ज्ञाता; नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु बसेन और कंस - ये पांच आचाराङ्गके ज्ञाता आचार्य हुए हैं | धवलाटीकाके सत्प्ररूपणा और वेदनाखण्डके प्रारम्भ में उक्त आचार्य को परम्परा दी गयी है | श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १ और २ में सुधर्मस्वामी नामके स्थान पर लोहाचार्यका नाम प्राप्त होता है ।" तिलोय पण्णत्ती, हरिवंशपुराण, ब्रह्महेमेंकृत श्रुतस्कन्ध, श्रवणबेलगोल
*
अथ खलु
महोति महावीर सवितरि परिनिर्वृते भगवत्परमपि गौतम गणधर - साक्षाविष्य- लोहा - जम्बु- विष्णुदेवापराजित - गोबर्द्धन भद्रबाहु विषास्त्र-प्रोष्ठिल कृतिकायंजय नामसिद्धार्थ धृतिषेणबुद्धिलादि जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम माग, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, शिलालेख संख्या -१, पृष्ठ १-२ । २. जावो सिद्धो बौरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी ।
जादा तस्सि सिद्ध सुधम्मसामी तदो जादो || - तिलोमपणती ४१४७६
३. त्रयः क्रमात्केवलिनो जिनारपरे द्विषष्टिवर्षान्तिरभाविनोऽभवन् ।
ततः परं पञ्च समस्त पूर्विणस्तपोधना वर्षशतान्तरे गताः । हरिवंशपुराण ६६।२२
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : १९