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वशपूर्वधारी (१) वीर निर्वाण संवत् १६२ ।। विशाखाचार्य १० (२) बोर निर्वाण संवत् १७२। प्रोष्ठिल (३) वीर निर्वाण संवत् १९१ मत्रिय (४) वीर निर्वाण संवत् २०८ । जयसेन (५) वीर निर्वाण संवत् २२९ नागसेन
२८ वर्ष (६) वीर निर्वाण संवत् २४.५ सिद्धार्थ १७ वर्ष (७) बोर निर्वाण संवत् २६४ धृतिसेन
१८ वर्ष (८) वीर निर्वाण संवत् २८२ विजय
१३ वर्ष (९) वीर निर्माण संवत् २९५ बुद्धिलिङ्ग २० वर्ष (१०) वीर निर्वाण संवत् ३१५ ।। देव
१४ वर्ष {११) वीर निर्वाण संवत् ३२९ धर्मसेन
१४ वर्ष (१६ वर्ष)
१८१+२ = १८३ आदरणीय डा० हीरालालजीने अनुमान किया है कि घमसेनका काल १४ वर्षके स्थान पर १६ वर्ष होना चाहिए। इस प्रकार वर्षगणना करनेपर १८३ वर्ष दशपूर्वधारियोंका समय आ जाता है। इसके पश्चात् पाँव एकादशाङ्गधारियों का समय अन्य स्थानों पर २२० वर्ष बतलाया गया है, पर इस पट्टावलीमें उनका समय १२३ वर्ष दिया है, जो यथार्थ प्रतीत होता है ।
११ अङ्गके धारक आचार्य(१) कोर निर्वाण संवत् ३४५ नक्षत्र १८ वर्ष (२) बोर निर्वाण संवत ३६३ ।। जयपाल २० वर्ष (३) बीर निवांण संवत् ३८३ पाण्डव ३९ वर्ष (४) श्रीर मितसिवन् ४२२ । ध्रुवसेन १४ वर्ष (1) वीर निर्वाण संवत् ४३६ कंस ३२ वर्ष
१२३ वर्ष अनन्तर दश, नौ और आठ अङ्गके ज्ञाताओंका समय ९७ वर्ष बतलाया है, पर पृथक-पृथक वर्षों का योग ९९ वर्ष आता है । अतः इसमें भा दो वर्षों की भूल प्रतीत होती है।
१०, ९ और ८ अङ्गके ज्ञाता आचार्य(१) वीर निर्वाग संवन् ४६८ सुभद्र ६ वर्ष {२) ॥ " ।। ४७४ यशोभद्र १८, (३) , " ।। ४९२ भद्रबाहु २३ , (४) , , , ५१५ लोहाचार्य ५२,, (५० वर्ष)
९९-२ = ९७ १४ : लोथकर नहावीर और जनको आचार्य-परम्परा