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इस प्राकृत पट्टावली में प्रत्येक आचार्यका अलग-अलग समय दिया गया है तथा समष्टि रूपमें भी वर्षसंख्या अङ्कित की गयी है। तीन केवलियों और पांच श्रुतकेवलियोंका समय एकसौ बासठ वर्ष बताया है । दशपूर्वधारियों की पुषक-पृथक् वर्षसंख्या और समष्टिरूप वर्षसंख्या प्राप्त नहीं होती। इसमें दो वर्षका अन्तर आता है। यथानंदिमित वास सोलह तिय अपराजिय दास वावीसं । इग-हीण-बीस वासं गोवण भट्बाहु गणतीसं ।। ५ ॥ सद सुयकेवलगाणी पंच जणा विण्ह मंदिमित्तो य । अपराजिय गोवरण तह महबाह य संजावा ।। ६ ।। सद वासट्टि सुवासे गए सु उप्पण्ण दह सुपुश्वाहा । सद तिरासि वासाणि य एगादह मुणिवरा जादा ।। ७ ।। आयरिय विसाख पोट्ठल खत्तिय जयसेण नागसेण मुणी ।। सिद्धस्थ बित्ति विजयं बहिलिंग देव घमसेणं ॥ ८ ।। दह उगणीस य सत्तर इकोस अट्ठारह सत्तर । अट्ठारह तेरह वीस चवह पोदय ( सोडस } कमेणेयं ।। ९ 11 अंतिम जिणिग्वाणे तियसय-पण चालवास जादेसु । पगादहंगधारिय पंच जणा मुणिवरा जादा ।।१०॥ नक्सलतो जयपालग पंडव धूरसेन फंस आयरिया । अठारह वीसवासं गणनालं चोद बत्तीसं ।। ११ ।। सद तेवीस यासे एगादह अंगधरा जादा । वासं सत्ताणवदिय दसंग नव अंग अट्टधरा ॥ १२॥ सुभदं च जसोभई भद्दबाह कमेण च । लोहाचम्य मुणीसं च कहियं च जिणागमे ।। १३ ।। छह अट्ठारह बास तेवीस वावण (पणास) वास मुणिणाहं । बस नव अगषरा वास दुसदवीस सधेसु ॥ १४ ॥ पंचसये पणसठे अंतिम-जिग-समय-जादेसु । उप्पंगा पंच जगा इयंगधारी मुणेयया ।। १५ ॥ महिपहिल माघनंदि य घरसेणं पुष्फयंत भूदवली । अहवीसं इगवीस उगणीसं तीस वीस बास पुणो ।। १६ ।। इगसय-अठार-बासे इयंगधारी य भूणिवरा जादा । छसप-तिरासिय-वासे णियाणा अंगद्दित्ति कहिय जिणे ।। १७ ।।
-जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, पृष्ठ ७१-७४
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : १५