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अतएव दर्शनसार, भावसंग्रह, आराधनासार, तत्त्वसार आदि ग्रन्थोंके रचयिता बिमलनगणिके शिष्य देवसेनगणि हैं ।
रचनाएँ
१. दर्शनसार, २ भावसंग्रह, ३. आलापपद्धति, ४. लघुनयचक, ५ आराधनासार, ६ तत्त्वसार ।
१. दर्शनसार - इस लघुकाय ग्रन्थमें कुल ५१ गाथाएं हैं। प्रथम गाथामें श्लेष में गुरुका स्मरण करते हुए तीर्थंकर महावीरको नमस्कार किया है और पूर्वाचार्यों द्वारा कथित गाथाओं का संग्रह किया है। उत्थानिक के अनन्तर समस्त इतर दार्शनिक मतोंका प्रवर्तक ऋषभदेव के पुत्र मरीचिको माना है । मरीचिने एकान्त, संशय, विपरीत, विनय और अज्ञान इन पाँचों एकान्त मार्गो का प्रवर्तन किया है। बताया है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथके तीर्थंकाल में सरयू नदी के तटवर्ती पलाश नामक नगरमें पिहितास्रव साधुका शिष्य बुद्धिकीर्ति मुनि हुआ, जो बहुत बड़ा शास्त्रज्ञ था । मत्स्याहारके कारण वह दीक्षासे भ्रष्ट हो गया और रक्ताम्बर धारण कर उसने एकान्तमतका प्रचलन किया । फल, दधि, दुग्ध, शक्कर आदिके समान मांसमें भी जीब नहीं है, अतएव उसकी इच्छा करने और भक्षण करने में कोई पाप नहीं है। उसने बतलाया कि जिस प्रकार जल एक द्रव पदार्थ है, उसके सेवनमें दोष नहीं उसी प्रकार मद्य भी द्रव पदार्थ है, उसके सेवन में भी किसी प्रकारका दोष नहीं है ।
एक पाप करता है और फल दुसरा भोगता है । इस प्रकार अनर्गल सिद्धान्तोंका प्रचार कर वह बुद्धकीर्ति नरक गया | कर्ता कोई अन्य व्यक्ति है और फल भोक्ता कोई अन्य। इस सिद्धान्तमें क्षणिकवादका कथन किया गया है । इस प्रकार मरीचि और बुद्धकीर्तिने मिथ्या मतोंका प्रचार किया ।
इस अवतारणके पश्चात् श्वेताम्बर मत, विपरीत मत, वाचनिक मत, अज्ञान मत, द्राविडसंघ, यापनीयसंघ, काष्ठासंघ, माथुरसंघ और भिल्लकसंघकी उत्पत्ति एवं समीक्षा की गयी है । काष्ठासंघकी समीक्षा करते हुए चोरसेन स्वामी के शिष्य जिनसेन, कुन्दकुन्द, गुणभद्र, विनयसेन, कुमारसेनके निर्देश आये हैं | कुमारसेनको काष्ठासंघका उपदेशक बतलाया है और इस संघका उत्पत्तिकाल वि० सं० ७५३ माना है । माथुरसंघकी उत्पत्ति रामसेन द्वारा वि० सं० ९५३ में मथुरा नगरी में मानी गयी है। भिल्लकसंघकी उत्पत्ति भविष्य- कल्पनाके रूपमें अति है-
३७० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा