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उत्पत्तिके सम्बन्धमें दी गयी गाथाओंमेंसे एक गाथा ज्यों-की-त्यों है और अन्य गाथाओंके भाव प्रायः मिलते हैं । यहाँ तुलनाके लिए कुछ गाथाएँ उद्धृत की जाती हैं। यथा
छत्तीसे after विषकमरायस्स मरणपत्तस्स । सोने उप्पण्णो सेasसंघो हु वलहीए || आसि उज्जेणिणयरे आयरिओ भद्द्वाहुणामेण । जाणिय सुणिमित्रो भणिओ संघो जिओ तेण || होहर वह दुब्भिक्खं बारह वरसाणि जाम पुण्णाणि । देसंतरा गच्छत् णिणियसंघेण संजुत्ता || सोकण इमं वधणं णाणादेसेहिं गणहरा सब्वे । णियणियसंघ पत्ता विहरी जत्य सुब्भिक्वं" ॥ दर्शनसार में श्वेताम्बरमतकी उत्पत्ति निम्न प्रकार बतायी है— छत्तीसे रिस-सए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । गो चलदीए पण मे बडो संधो ॥ सिरिभवाहुमणिणो सोसो णामेण संति आइरिओ । तस्सय सीसो ट्टो जिणचंदो मंदचारितो || ते किये ममेयं इत्योणं अत्थि तब्भवे मोक्खो । केवलणाणीण पुणो अद्दक्खाणं तहा रोओ 11 इन गाथाओं की तुलना से यह स्पष्ट है कि दोनों ग्रन्थोंका रचयिता एक ही व्यक्ति है ।
पण्डित परमानन्दजो शास्त्री दिल्लीका अभिमत है कि 'भावसंग्रह' 'दर्शनसार' के रचयिता देवसेनकी कृति नहीं है, क्योंकि 'दर्शनसार' मूल संघका ग्रन्थ है, उसमें काष्ठासंघ, द्रविडसंघ, यापनीयसंघ और माधुरसंघको जेनाभास घोषित किया है । पर 'भावसंग्रह' केवल मूलसंघका ही मालूम नहीं होता, क्योंकि उसमें 'त्रिवर्णाचार' के समान आचमन, सकलीकरण और पञ्चामृताभिषेक आदिका विधान है। इतना ही नहीं, अपितु इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, पवन, यक्ष और ऐशान आदि दिग्पाल देवोंको सशस्त्र और युवतिवाहन सहित आह्वान करने, बलि, चरु आदि पूजा- द्रव्य तथा यज्ञके भागको बीजाक्षरयुक्त मन्त्रोंसे देनेका विधान है । अतएव पं० परमानन्दजीने बताया है कि
१. मायसंग्रह, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, गाथा १३७-१४० ।
२, दर्शनसार, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, गाथा ११-१३ ।
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : ३६७