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________________ ४५ लाख योजन बाहुल्यरूप तिर्यक् प्रतरोंको श्रेणीके मसंख्यासवें भागमात्र अवगाहनामेदोंसे गुणित करने पर प्राप्त राशि प्रमाण मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके भेद हैं, और दूसरोंका मत यह है कि ४५ लाख योजनोंके राजुप्रत्तरके अर्द्धच्छेद करने पर पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र जो अर्द्धच्छेद प्राप्त होते हैं, उतने प्रमाण मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके मेद है । इसपर धवलाकारने कहा है कि उपदेश प्राप्त कर, कौन व्याख्यान सत्य है और कौन असत्य, इसका निर्णय करना चाहिये। ये दोनों ही उपदेश सूत्र हैं । यतः आगे इन दोनों ही उपदेशोंके आश्रयसे पृथक्-पृथक् अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गयी है । यथा---" एत्थ उचदेसं लद्बण एदं चैव वक्खाणं सच्चमण्णं असच्चमिदि णिच्छओ कायव्वो । एदे च दो वि उवएसा सुत्तसिद्धा | कुदो ? उवरि दो चि उपदेसे अस्सिदूण अप्पा बहुगपरूवणोदो" । इस प्रकार विरोधी सूत्रों का समन्वयकर आगमप्रमाणका कथन किया है । अन्य ग्रन्थोंके निर्देश वीरसेनस्वामी के वैदुष्यका परिज्ञान इसी बात से किया जा सकता है कि उन्होंने अपनी इस टीकामें प्राचीन आगमके उपलब्ध साहित्यका पूर्णतया उपयोग किया है। जिन आचार्योंके नामका निर्देश ग्रन्थोल्लेख पूर्वक किया गया है, वे निम्न प्रकार हैं 'ধ १. गृद्धपिच्छाचार्यंका तत्त्वार्थसूत्र २ तत्स्वार्थ भाष्य (तत्त्वार्थवातिकभाष्य ), ३. सन्मतिसूत्र, ४ सत्कर्मप्राभूत, ५५ पिण्डिया, ६ तिलोयपण्णत्ति, " ७. व्याख्याप्रशहि', ८. पंचास्तिकाय प्राभृस ९, ९ जीवसमास १०, १०. पूज्यपाद १. धवलाटीका समन्वित षट्खण्डागम, पु० १३, पृ० ३८१ । २. बही, पृ० ४, पृ० ३१६, पृ० १, पृ० २५८ । १०३ । ३. वही, पृ० १, पृ० ४. वही, पृ० १, पृ० ५. वही, पु० १, पृ० ६. वही, पु० २ ० ७, वही, पु० ३, पृ० ८. वही, पृ० ३, पृ० ९. वही, पृ० ४, पृ० १०. वही, पु० ४, ५० १५: पु० ९, १० २४३-४४ । २१७, २२१: पु० ११, पृ० २१ । ७८८ । ३६, ५०४, पृ० १५७ । ३५, पु० १०, ५० २३८ । ३१५-३१७ । ३१५ । भूतपर और सारस्वताचार्य : ३२९
SR No.090508
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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