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विरचित सारसंग्रह, ११. प्रभाचन्द्र भट्टारक (अन्धकार), १२. समन्तभद्र स्वामी (ग्रन्थकार), १३. छेदसूत्र, १४. सत्कर्म प्रकृतिप्राभृत५, १५. मूलतन्त्र', १६. योनिभूत और १७ सिद्धिविनिश्चय' ।
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इनके अतिरिक्त 'बट्खण्डागम' के अन्तर्गत विविध अनुयोगद्वार जैसे सन्तसूत्र (२०६५) ( पृ० वेदनाक्षेत्र विधान (पु०४, पृ० ९४ ), चूलिकासूत्र ( पु० ६, पृ० ११८) और वर्गणासूत्र ( पु० १, पृ० २९० ) इत्यादि उसी षट्खण्डागमके छठे खण्डस्वरूप महाबन्ध (पु० ७, पृ० १९५) तथा कसायपाहुड (पु० १, पृ० २१७) व उससे सम्बद्ध चूर्णि सूत्र (५०६, पृ० १७७, उच्चारणाचार्य (पु० १०, पृ० १४४), निक्षेपाचार्य (पु० १०, पृ० ४५७), महावाचक आर्यनन्दी (पु० १६, पृ० ५७७), आर्यमक्षु क्षमाश्रमण (पु० १६, पू० ५१८) और नागहस्ती (५० १५, पृ० ३२७) आदिका उल्लेख तो जहाँ-तहाँ बहुतायत से हुआ है। इसमें सन्देह नहीं कि आचार्य वीरसेनने 'कसा पाहुड' और उससे सम्बद्ध चूर्णिसूत्रोंका अध्ययन भी सूक्ष्मरूपसे किया
| वलाटोका में अनेक स्थलोंपर चूर्णिसूत्र और कसायपाहुडके उल्लेख आये हैं। निम्नलिखित ग्रन्थोंके उद्धरण या नाम भी धवलाटीका में पाये जाते हैं। १ आचाराङ्गनिर्युक्ति, २ मूलाचार, ३ प्रवचनसार, ४ सन्मतिसूत्र ५ पंचास्तिकायप्राभृत, ६ दशवेकालिक, ७ भगवती आराधना, ८ अनुयोगद्वार, ९ चारित्रप्राभूत, १० स्थानांगसूत्र ११ शाकटायनन्यास, १२ आचाराङ्गसूत्र, १३ लघीयस्त्रय, १४ आप्तमोमांसा, १५ युक्त्यनुशासन, १६ विशेषावश्यकभाष्य, १७ सर्वार्थसिद्धि, १८ सौन्दरनन्द, १९ धनञ्जयनाममाला और अनेकार्थनाममाला, २० भावप्राभृत, २१ बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र, २२ नन्दिसूत्र, २३ समवायाङ्ग, २४आवश्यकसूत्र, २५ प्रमाणवार्तिक, २६ सांख्यकारिका और २७ कर्मप्रकृति ।
धवलाटीका में जिन गाथाओंको उद्धृत किया गया है उनमें से अधिकांश
१. धवलटीका समन्वित षट्खण्डागम, पृ० ९ १० १६७ ।
२. वही, पु० ९ पृ० १६६ ।
३. वही, पु० ९, पृ० ६७ ।
४. वही, पु० ११, १० ११५ ।
५. वही, पु० ९, पृ० ३१८: पु० १५, पृ० ४३
६. वही, पु० १३, पु० ९० ।
७. वही, पु० १३, पृ० ३४९ ।
८. वहीं, पु० १३, पृ० ३५६
३३० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा