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स्वयम्वरमें वजावर्त धनुषको चढ़ानेकी शतं रखी गयो । अन्य राजाओंके असमर्थ रहने पर रामने इस धनुषको चढ़ाया और सीताके साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ।
रामके बड़े होने पर दशरथको संसारसे विरक्ति हो गयो और बे रामको राजा बनाकर स्वयं मुनिदीक्षा ग्रहण करनेकी तैयारी करने लगे। जब कैकेयीको यह समाचार ज्ञात हुआ, तो उसने अपने सुरक्षित घरको माँग लिया, जिसके अनुसार भरतको अयोध्याका राज्य और रामको वनवास दिया गया। ३. वनभ्रमण
(क) रामका वनवास (४१ वां पर्व)-राम लक्ष्मण और सीताके साथ दक्षिण दिशाकी ओर चल दिये। मार्ग में कितने हो त्रस्त राजाओंका अभयदानद्वारा उद्धार किया। कैकेयी और भरत वनमें जाकर रामको लोद आनेका अनुरोध करने लगे, पर पिताको इच्छाके विरुद्ध कार्य करना रामने स्वीकार नहीं किया।
(ख) युद्धोंका वर्णन (४२ वा पर्व)--राम-लक्ष्मणने यहाँ पर अनेक शत्रुओं, धर्मविरोधियों, पापियों और अन्यायो अत्याचारियोंको सही मार्ग पर न आनेके कारण यमलोक भेज दिया। राजा वचकणको सिंहोदरके चक्रसे बचाया, वाल्याविल्यको म्लेच्छके कारागारसे मुक्त किया एव भरतका विरोध करनेवाले अतिवीर्यका नर्तकीका वेशधारण कर लक्ष्मणने उसका मान खण्डित किया। लक्ष्मणका अनेक राजकुमारियोंके साथ विवाह हुआ। दण्डकबनमें निवास करते हुए राम-लक्ष्मणने मुनिको आहारदान दिया और जटायु नामक वृद्ध तपस्वीसे सम्पर्क स्थापित किया।
(ग) शम्बूकमरण एवं खरदूषणसे युद्ध (४३-४४ पर्व)—सूर्यहास नामक तलवारको पाने हेतु खरदूषणका पुत्र शम्बूक तपस्या कर रहा था, किन्तु भ्रमश बाँसोंके भिड़ेमें छिपे हुए शम्बुकका लक्ष्मण द्वारा अस्त्रपरीक्षासे मरण हो गया। विलाप करती हुई उसकी माता चन्द्रनखा लक्ष्मणके रूपसे मोहित होकर कामतृप्तिको भिक्षा मांगने लगी, किन्तु उसमें असफलता देख, पतिसे लक्ष्मणपर बलात्कारका दोषारोपण कर युद्ध करनेका अनुरोध किया। दोनों पक्षोंमें भयंकर युद्ध हुआ, खरदूषण आदि अनेक राक्षस यमपुरी पहुंचा दिये गये।
४. सीताहरण और अन्वेषन (४५-५५ पर्व)—अपने बहनोईको सहायता करनेके हेतु आया हुआ रावण सीताके अनिन्द्य लावण्यको देखकर मोहित हो
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : २८३