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मुहूर्त में हुआ । फलस्वरूप यह जन्मसे हो वीर, प्रतापी और यशस्वी था। इनकी तीन रानियाँ थीं ।
(क) दर्पपुर के राजाकी पुत्री अपराजिता या कौशल्या (ख) पद्मपत्र नगर के राधाकी सुमित्र (ग) रत्नपुरके राजाकी पुत्री सुप्रभा
एक दिन रावणको किसीसे विदित हुआ कि उसकी मृत्यु राजा जनक और दशरथकी सन्तानोंके द्वारा होगी । अतः रावणने अपने भाई विभीषणको मिथिलानरेश जनक और अयोध्यानरेश दशरथको मारनेके लिए भेजा, पर विभीषणके आनेके पूर्व ही नारदने उन दोनों को सचेत कर दिया था । जिससे वे दोनों अपने-अपने भवनों में अपने-अपने अनुरूप कृत्रिम मूर्ति छोड़कर बाहर निकल गये । विभीषण ने इन पुतलोंको हो सचमुचका जनक और दशरथ समझा और उन्हींका मस्तक काटकर समुद्रमें गिरा दिया तथा वापस लोटकर लंका में वैभवपूर्वक राज्य करने लगा |
राजा दथरथको विजय एवं कैकेयीसे परिणय ( २१ - २५ पर्व ) - भ्रमण करते हुए राजा दशरथ अनेक सामन्तोंके साथ केकय देश पहुँचे और वहाँ की राजपुत्री कैकेयीको स्वयम्वरमें जीत लिया । स्वयंवर में समागत राजाओंने इन्हें अज्ञातकुलशील समझकर इनकी युद्ध करनेका निमन्त्रण दिया । दशरथने रणभूमि में उतरकर वीरतापूर्वक युद्ध किया और कैकेयांने उनके रथका संचालन किया । जिससे महाराज दशरथ बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कैकयीसे वर माँगने को कहा । समय पाकर चारों रानियोंको चार पुत्र उत्पन्न हुए । कौशल्याने राम, सुमित्राने लक्ष्मण, कैकेयीने भरत और सुप्रभाने शत्रुघ्नको जन्म दिया।
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सीताका अम्म (२६-३० पर्व ) – राजा जनकके यहाँ सोता नामक पुत्री और भामण्डल नामक पुत्रने जन्म लिया । पूर्वजन्मकी शत्रुताके कारण किसी विद्याधरकुमारने भामण्डलका अपहरण किया और उसे वनमें छोड़ दिया । इस कुमारका लालन-पालन चन्द्रगति नामक विद्याधरने किया । नारद किसी कारणवश सोतासे रुष्ट हो गये और उसका एक सुन्दर चित्रपट तैयार कर भामण्डलको भेंट किया। भामण्डल सीता के सुन्दर रूपको देखते ही आसक्त हो गया और विद्याधरों सहित मिथिला पर आक्रमण कर दिया, पर मनोहर नगर और वाटिका को देखते ही उसे जातिस्मरण हो गया और उसे यह ज्ञात हो गया कि सोता उसकी सहोदरा है । अतएव उसने जनकके समक्ष अपना परिचय प्रस्तुत किया तथा उन्हें सीताका स्वयम्बर करनेका परामर्श दिया ।
२८२ : तोर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
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