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अंजनासे हुआ। पबनमय उसकी सुन्दरतासे आकृष्ट होनेपर भी, अंजनाको एक सत्री द्वारा अपनो निन्दा सुनकर वह अंजनासे रुष्ट हो गया और विवाह हो जानेपर उसने अंजनाका परित्याग कर दिया। जब पवनजय रावणको किसी युद्ध में सहायता देनेने लिये जा रहा था, तो उसका शिविर एक नदीके तट पर स्थित हआ । यहाँ चकवाके वियोगमें एक चकवीको विलाप करते देख, उसे अंजनाकी स्मृति हा आयी और अपने विये कार्यों पर पश्चात्ताप करने लगा। वह सेनाकी वहीं छोड़ श्रिम ही अंजना के पास चला आया। प्रथम मिलनके फलस्वरूप अंजना गर्भवती हुई। पवनजय प्रभात होने के पूर्व ही बिना किसीसे कहे-सुने अंजना भवसे चला गया | अंजनाकी सास तथा अन्य परिवारके व्यक्तियोंने जब उसके गर्भवतीक चिह्न देखे, तो परिवारके अपवादके भयसे उन्होंने अंजनाको घरो बाहर निकाल दिया । वह दर-दर भटकती हुई एक निर्जन वनम पहचो । यहाँ उसने एम का जन्म दिया | इसी समय आकाशमागंसे राजा प्रतिसूर्य जा रहा था । उसने जब एक नारीका करुण चीत्कार सुना, तो उसका हृदय नया और गावे आकर परिचय जानना चाहा । इस परिचयके क्रममें जब उसे यह मालम हुआ कि यह उसकी भांजो है, तो उसे अपार हर्ष हुआ और उस पुत्रसहित लकर अपने घर हनुरुह द्वीपमें चला आया । मागम चलते हए हनुमान अपने बाल्य-चांचल्यके कारण विमानसे नीचे गिर पड़े, पर हनुमानको चाट न लगी और जिस शिला पर व गिरे थे वह शिला चूर-चूर हो गयी। हनुरुह तापम बालकके संस्कार सम्पन्न किय गये । इसी कारण इसका नाम हनुमान रखा गया ।
युद्धमें विजय प्राप्त करने के पश्चात् पवनञ्जय घर वापस लौटा, पर अंजनाको न पाकर तथा उसत्र अपवादको ज्ञातकर उसे अपार वेदना हुई । फलत: वह घर छोड़कर वनकी खाक छानन चल दिया। वह वन-बन भटकता हुआ, वृक्ष और लताओंस अजनाका पता पूछता हुआ उन्मत्तकी तरह भ्रमण करने लगा। कुछ समय पश्चात् बह नम करता हआ हनुरुह द्वाप पहचा और वहाँ अपनी पत्नी और पुत्रको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ तथा सभी के साथ आदित्यपुर लौट आया।
चन्द्रनखाका विवाह खरदूषण नामक राक्षसको साथ हुआ और इस दम्पतिके शबूक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ।
राजा दशरथका जन्म (१९-२१ पर्व)- इक्ष्वाकुवंशमें अयोध्याके राजा अजके यहाँ दशरथका जन्म हुआ । दशरथका जन्म उत्तम नक्षत्र और उत्तम
श्रुतपर और सारस्वताचार्य : २८१