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गया। उस समय राम-लक्ष्मण बाहर गये हुए थे। अतः बलात् उसका अपहरण कर, अपने पुष्पक विमानमें बैठाकर लंकाकी ओर चल दिया ! मार्ग में जटायु एवं रत्नजटो नामक विद्याधरोंसे युद्ध करना पड़ा, पर इस युद्ध में रावणको हो विजय रही।
राम जब युद्ध समाप्त कर वापस लौटे, तो कुटियाको सोतासे शन्य देखकर विलाप करने लगे। रामने अपने कार्यके सिद्ध्यर्थ वानरवंशी राजा सुग्रीवसे मित्रता को और उनका सहायतासे सोताका पता लगाया।
५. युद्ध (५६-७८ पर्व)-सुग्रीव आदि विद्याधरोंको सहायतासे रामको समस्त सेना आकाशमागं द्वारा लंका पहँच गयो और रामने भयंकर युद्ध आरम्भ किया । सर्वप्रथम रामने रावण के पास संधिका प्रस्ताव भेजा, पर उसने उसे अस्वीकार कर दिया। रावणके अनैतिक व्यवहारसे दुःखो होकर विभीषण भी रामसे आकर मिल गया और रामने विभीषणको लंकाका राज्य देनेका संकल्प कर लिया। दोनों ओरसे भयंकर युद्ध हुआ और अन्तमें पापपर पुण्यको विजय हुई । रामने रावणका बध कर पृथ्वीको निष्कटक बनाया । ६. उत्तरचरित
(क) राज्योंका वितरण एवं सोतात्याग { ७९-१०३ पर्व )-रावणको मृत्युके पश्चात् राम-लक्ष्मणनं लंकावासियोंका आश्वासन दिया और युद्धसे अस्त-व्यस्त लंकाको स्थितिको सम्भाला। अनन्तर अयोध्या लौट आनेपर अपने राज्यका समुचित बंटवारा किया।
समय पाकर सीता गर्भवती हुई किन्तु दुर्भाग्यसे रावणके यहाँ निवास करनेके कारण प्रजा द्वारा निन्दा होनेसे, रामने सौताका निर्वासन कर दिया। सोता वन-यन भ्रमण करने लगी, उसने वनजंघ मुनिके आश्रममें लव और कुशको जन्म दिया।
(ख) जग्निपरीक्षा (१०४-१०९ पर्व)-दिग्विजयके समय लव और कुशका राम-लक्ष्मणके साथ घनघोर युद्ध हुआ। नारदने उपस्थित होकर राम-लक्ष्मणको लव और कुशका परिचय कराया | अग्निपरीक्षा द्वारा साताको शुद्धि की गयी। सीताके शोलके प्रभावसे अग्निका दहकता कुण्ड शीतल जल बन गया। रामने सोतासे पुनः गहावासमें सम्मिलित होनेका अनुरोध किया, पर सीताने अनुरोधको ठुकरा दिया और आर्यिकाका व्रत ग्रहण कर लिया तथा तपश्चरण द्वारा द्वादशम स्वर्गका लाभ किया। २८४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी माधार्य-परम्परा