________________
यहाँ भगवानको अद्भुत सूर्यके रूपमें वणित कर अतिशयोक्तिका चमत्कार दिखलाया गया है।
कवि आदिजिनको बुद्ध, शङ्कर, धाता और पुरुषोत्तम सिद्ध करता हुआ कहता हैबुद्धस्त्वमेव विबुधाचित्तबुद्धिबोधा
त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात् । धातासि धीर शिवमार्गविविधाना
द्वयकं त्वमेव भगवन्पुरुषोत्तमोऽसि ।। इस प्रकार इस स्तोत्र-काव्यमें भक्ति, दर्शन और काव्यको त्रिवेणी एक साथ प्रवाहित प्राप्त होतो है ।।
रविषेण रविषेणाचार्य ऐसे कलाकार कवि हैं, जिन्होंने संस्कृतमें लोकप्रिय पौराणिक चरितकाव्यका ग्रथन किया है। पौराणिक चरितकाव्य-रचयिताके रूपमें रविषेणका सारस्वताचार्योंमें महत्त्वपूर्ण स्थान है । जीवन परिचय __ आचार्य रविषेण किस संघ या गण-गच्छके थे, इसका उल्लेख उनके ग्रन्थ 'पद्मधारत में उपलब्ध नहीं करता। सनात्त नाम ही इस बातका सूचक प्रतीत होता है कि ये सेनसंघके आचार्य थे। पद्मचरितमे निदिष्ट गरुपरम्परासे अवगत होता है कि इन्द्रसेनके शिष्य दिवाकरसेन थे और दिवाकरसेन. के शिष्य अहंत्सेन । इन अर्हत्तसेनके शिष्य लक्ष्मणसेन हुए और लक्ष्मणसेनके शिष्य रविषेण । यथा
ज्ञाताशेषकृतान्तसन्मुनिमनःसोपानपर्वावली पारम्पर्यसमाधित सुवचनं सारार्थमत्यद्भुतम् । आसीदिन्द्रगुरोदिवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनिस्तस्माल्लक्ष्मणसेनसन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतम् ।। सम्यग्दर्शनशुद्धिकारणगुरुश्रेयस्करं पुष्कलं विस्पष्टं परमं पुराणममलं श्रीमत्प्रबोधिप्रदम् । रामस्थाद्भुतविक्रमस्य सुकृतो माहात्म्यसङ्कीर्तने
श्रोतव्यं सततं विचक्षणजनैरात्मोपकाराथिभिः ॥ १. भक्तामरस्तोत्र, पद्य २५ । २. पपचरितम्, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, १२३।१६८-१६९ । २७६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आरार्य-परम्परा