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________________ पथिकोंकी गर्मी से रक्षा करती है, तब जलाशयको बात ही क्या, उसी प्रकार जब आपका नाम ही संसारके तापको दूर कर सकता है, तब आपके स्तोत्रके सामर्थ्य का क्या कहना 1 आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन संस्तवस्ते नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति । तीव्रातपोपहतपान्यजनान्निदाधे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥ भक्तामर स्तोत्र और कल्याणमन्दिरकी गुणगान महत्त्व सूचक कल्पना तुल्य है । दोनों ही जगह नामका महत्व है। अतः एक दूसरेसे प्रभावित हैं अथवा दोनोंने किसी अन्य पौराणिक स्तोत्र से उक्त कल्पनाएं ग्रहण की हैं | भक्तामरस्तोत्रमें बतलाया है कि हे प्रभो ! संग्राम में आपके नामकर स्मरण करनेसे बलवान राजाओंके युद्ध करते हुए घोड़ों और हाथियोंको भयानक गर्जनासे युक्त सैन्यदल उसी प्रकार नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है, जिस प्रकार सूर्यके उदय होने से अन्धकार नष्ट हो जाता है । यथा वल्गत्तुरङ्गगजगजितभीमनाद - माजी बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकर मयूख शिखापद्ध त्वत्कीर्त्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति । उपर्युक्त कल्पनाका समानान्तर रूप कल्याणमंदिरके ३२ वें पद्म में उसी प्रकार पाया जाता है जिस प्रकार जिनसेनके पार्श्वाभ्युदय में । कल्याणमंदिर में भी यही कल्पना प्राप्त होती है । यथायद्गजं दुजितघनौघमदभ्रभीमभ्रश्यत्तडिन्मुसलमांसलघोरधारम् । दत्येन मुक्तमथ दुस्तरवारि दक्षं तेनैव तस्य जिन ! दुस्तरवारिकृत्यम् || इसी प्रकार भक्तामर स्तोत्रके "स्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसम्" ( भक्तामर पद्य २३ ) और "स्वां योगिनो जिन सदा परमात्मरूपम्' (कल्याणमंदिर पद्य १४ ) तुलनीय हैं | १. कल्याणमन्दिर, पद्य ७ । १. भक्तामर स्तोत्र, पद्म ४२ । २. कल्याणमन्दिर, पद्म ३२ । २७४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090508
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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