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आचार्योकी नामावली कालक्रमके हिसाबसे दी गयी प्रतीत होती है। इसमें वृद्धगर्ग, गर्ग, पाराशर, वशिष्ठ, वृहस्पति, सूर्य, वादरायण, पीलुकाचार्य, नृपपुत्र, देवल, काश्यप, नारद, यवन, वराहमिहिर, वसन्तराज आदि आचार्यों के नाम आये हैं। इससे ध्वनित होता है कि आचार्य ऋषिपुत्र देवलके पश्चात् और वराहमिहिरके पूर्ववर्ती हैं। दोनोंकी रचना-पद्धतिसे भी यह भेद प्रकट होता है, क्योंकि विषयप्रतिपादनकी जितनी गम्भीरता वराहमिहिरमें पायी जाती है, उतनी उनके पूर्ववर्ती आचार्यों में नहीं।
यदि Catalogus Catalasorum के अनुसार आचार्य ऋषिपुत्रके पिता जैनाचार्य गगं मान लिये जाये, तब तो उनका समय निर्विवाद रूपसे ई० सन् की चौथी शती है, क्योंकि गर्गाचार्य वराहमिहिरसे कम-से-कम सौ वर्ष पहले हुए हैं । गर्गसिद्धान्तके तत्व उदयकालीन ज्योतिष-तत्त्वोंके समकक्ष हैं। इस हिसाबसे ऋषिपुत्रका समय ई० सन् चतुर्थ शतीका मध्य भाग आता है।
भट्टोत्पलका समय शक सं० ८८८ और अद्भुतसागरके संकलयिता मिथिलाधिपति महाराज लक्ष्मणसेनके पुत्र महाराज बल्लालसेनका शक सं० १०९० है। अद्भुतसागरमें बराह, वृद्धगर्ग, देवल, यवनेश्वर, मयूरचित्र, राजपुत्र, ऋषिपुत्र, ब्रह्मगुप्त, बलभद्र, युलिश, विष्णुचन्द्र, प्रभाकर आदि अनेक आचार्योके वचन संग्रहीत हैं। अतः निविवाद रूपसे आचार्य ऋषिपुत्रका समय भट्टोत्पल और वल्लालसेनके पूर्व है।
ऋषिपुत्रने प्राचीन प्राकृतमें निमित्तशास्त्रको रचना की है, इसकी भाषा सिद्धसेनके 'सम्मइ-सुत्त'की भाषासे मिलती-जुलती है 1 उपसर्ग और अध्ययोंक प्रयोग समान रूपमें पाये जाते हैं । ध्वनिपरिवर्तन सम्बन्धी नियम भी तुल्य हैं। ह्रस्वमात्रिक नियमका प्रयोग भी इस ग्रन्थको भाषामें किया गया है। भतएव भाषाको दृष्टिसे इसका रचनाकाल ई० सन् छठी-सातवीं शती होना चाहिए । ज्योतिषविषयक ज्ञान और रचना __ आचार्य ऋषिपुत्र फलितज्योतिषके विद्वान् थे । गणितसम्बन्धी इनकी एक भी रचनाका अब तक पता नहीं लग सका है । उपलब्ध उद्धरण और ऋषिपुत्र निमित्तशास्त्रमें इनकी गणितविषयक विद्वत्ताका पता नहीं चलता है। इनकी त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषमेंसे केवल संहिता विषयसे सम्बद्ध रचनाएं ही प्राप्त हैं। प्रारम्भिक रचनाए रहनेके कारण विषयकी गम्भीरता नहीं है, केवल सूत्ररूपमें ही संहिताके विषयोंका प्रथन किया गया है।
निमित्तोंके तीन भेद बतलाकर फलादेश लिखा है२६६ - तीर्थकर महावीर और उनकी वाचार्य-परम्परा
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