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अपनी पैतृक राजधानी पातालपुर लंका में ले जाता है, जिसे खरदूषणने विराचितके पिताका वध कर छीन लिया था ।
सुग्रीच अपनी पत्नी ताराको विटसुग्रीवके चंगुलसे बचाने के लिये रामकी शरण में जाता है और राम सुग्रीवके शत्रु विटसुग्रीवको पराजित कर वानरवंशी सुग्रीवका उपकार करते हैं। लक्ष्मण सुग्रीव की सहायतासे रावणका वध करते हैं । सीताको साथ लेकर राम लक्ष्मण सहित अयोध्या लौट आते हैं ।
अयोध्या लौटने पर केकयी और भरत दीक्षा धारण करते हैं। राम स्वयं राजा न बनकर लक्ष्मणको राज्य देते हैं। कुछ समय पश्चात् सीता गर्भवती होती है, पर लोकापवादके कारण राम उनका निर्वासन करते हैं। संयोगवश पुंडरीकपुरका राजा सीताको भयानक अटवीसे ले जाकर अपने यहाँ बहनकी तरह रखता है । वहाँ पर लवण और अंकुशका जन्म होता है । वे देश विजय करनेके पश्चात् अपने दुःखका बदला लेनेके लिये राम पर चढ़ाई करते हैं, और अन्तमें पिताके साथ उनका प्रेमपूर्वक समागम होता है। सीताकी अग्निपरीक्षा होती है जिसमें वह निष्कलंक सिद्ध होतो है और उसो समय साध्वी बन जाती है । लक्ष्मण की अकस्मात् मृत्यु हो जाने पर राम शोकाभिभूत हो जाते हैं और भ्रातृमोहमें उनका शव उठाकर इधर-उधर भटकते हैं, तब वे दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं और कठोर तप करके निर्वाण प्राप्त करते हैं ।
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समीक्षा- इस चरितकाव्य में पौराणिक प्रबन्ध और शास्त्रीय प्रबन्ध दोनोंके लक्षणोंका समावेश है । वाल्मीकि रामायणकी कथावस्तुमें किचित् संशोधन कर यथार्थ बुद्धिवादको प्रतिष्ठा की है। राक्षस और वानर इन दोनोंको नृवंशीय कहा है। मेघवाहनने लंका तथा अन्य द्वीपोंकी रक्षा की थी अतः रक्षा करनेके कारण उसके वंशका नाम राक्षस वंश प्रसिद्ध हुआ । विद्याधर राजा अमरप्रभने अपनी प्राचीन परम्पराको जीवित रखने के लिए महलोंके तोरणों और ध्वजाओं पर वानरोंकी आकृतियाँ अंकित करायी थीं तथा उन्हें राज्यचिह्नको मान्यता दी, अतः उसका वंश बानरवंश कहलाया । ये दोनों वंश दैत्य और पशु नहीं थे, बल्कि मानवजातिके ही गंशविशेष थे । इसी प्रकार इन्द्र, सोम, वरुण इत्यदि देव नहीं थे, बल्कि विभिन्न प्रान्तोंके मानववंशी सामन्त थे | रावणको उसकी माताने नो मणियों का हार पहनाया, जिससे उसके मुखके नौ प्रतिबिम्ब दृश्यमान होनेके कारण पिताने उसका नाम
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दशानन रखा ।
इसी प्रकार हनुमान विद्याधर राजा प्रह्लादके पुत्र पवनञ्जय और उनकी पत्नी अंजना सुन्दरीके औरस पुत्र थे । सूर्यको फल समझकर हनुमान द्वारा
श्रुतषर और सारस्वताचार्य : २५९