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ग्रसित किये जानेका वृत्तान्त इस चरितकाव्य में नहीं है। हनुरुहपुरमें जन्म होनेके कारण उनका नाम हनुमान रखा गया था ।
सीताको उत्पत्ति भी हलकी नोकसे भूमि खोदे जाने पर नहीं हुई है । वह तो राजा जनक और उनकी पत्नी विदेहाकी स्वाभाविक औरस पुत्री थी ।
हनुमान कोई पर्वत उठाकर नहीं लाये । वे विशल्या नामक एक स्त्री चिकित्सकको घायल लक्ष्मण की चिकित्सा के लिए सम्मानपूर्वक लाये थे ।
चरितकाव्यका सबसे प्रधान गुण नायकके चरित्रका उत्कर्ष दिखलाना है ! दशरथ द्वारा भरतको राज्य देनेका समाचार सुनकर राम अपने पिताको धैर्य देते हुए कहते हैं कि पिताजी आप अपने वचनकी रक्षा करें। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण आपका लोकमें अपयश हो । जब भरत राज्य ग्रहण करनेमें आनाकानी करते हैं, तब राम उन्हें अपने पित्ताको विमल कीर्ति बनाये रखने और माताके वचनको रक्षा करनेका परामर्श देते हैं । जब भरत अनुरोध स्वीकार नहीं करते, तो राम स्वयं ही अपनी इच्छासे वन चले जाते हैं। यह नायककी स्वाभाविक उदारताका निदर्शन है । युद्धके समय जब विभीषण रामसे कहता है कि विद्यासाधना में ध्यानमग्न रावणको क्यों नहीं बन्दी बना लिया जाए, तब राय क्षात्रधर्म बतलाते हुए कहते हैं कि धर्म-कर्त्तव्यमें लगे व्यक्तिको घोखेसे बन्दी बनाना अनुचित है । परिस्थितिवश लोकापवादके भयसे राम सीताका निर्वासन करते हैं । किन्तु सीताके अग्निपरीक्षाके अनन्तर राम बहुत पछताते हैं और क्षमा याचना करते हैं।
रावण स्वयं धार्मिक और व्रती पुरुष अंकित किया गया है । सोताकी सुन्दरता पर मोहित होकर रावणने अपहरण अवश्य किया, किन्तु सोताको इच्छा के विरुद्ध उसपर कभी बलात्कार करनेकी इच्छा नहीं की जब मन्दोदरीने बलपूर्वक सीताके साथ दुराचार करनेकी सलाह रावणको दो, तो उसने उत्तर दिया- "यह संभव नहीं है, मेरा व्रत है कि में किसी भी स्त्रीके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध बलात्कार नहीं करूंगा" । वह सीताको लोटा देना चाहता था, किन्तु लोग कायर न समझ लें, इस भयसे नहीं लौटाता । उसने मनमें निश्चय किया था कि युद्धमें राम और लक्ष्मणको जीतकर परम वैभवके साथ सीताको वापस करूंगा। इससे उसकी कीर्तिमें कलंक नहीं लगेगा और यश भी उज्जवल हो जायगा । रावणकी यह विचारधारा रावणके चरित्रको उदात्तभूमि पर ले जाती है। वास्तवमें विमलसूरिने रावण जैसे पात्रोंके चरित्रको भी उन्नत दिखलाया है ।
२६० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा