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या यों कहें कि वह 'सब'को 'एक' में परिणत कर लेगा । वह वस्तुमात्रको उसके सहज शुद्ध रूपमें देख लेगा'।" परमात्मप्रकाशके रहस्यवादमें आत्मानुभूति सम्बन्धी विशेषताके साथ अन्य विशेषताएँ भी पायी जाती हैं।
१. आत्मा और परमात्माके बीच पारस्परिक अनुभूतिका साक्षात्कार और दो कि एकत्त्वकी प्रतीति।
२. आत्मामें परमात्मशक्तिका पूर्ण विश्वास ३. ध्येय, ध्याता या ज्ञेय-ज्ञातामें एकत्वका आरोप ४. सांसारिक विषयोंके प्रति उदासीनता
५. लौकिक ज्ञानके साधन इन्द्रिय और मनको सहायताके बिना हो पूर्ण सत्यको जान लेनेकी क्षमता ।
६. सध्यात्मवादकी रहस्यवादके रूपमें कल्पना । ७. निश्चय और व्यवहार नयको दृष्टियोंसे भेदाभेदका विवंचन ।
८. पुण्य-पापको समता तथा दोनोंको ही समान रूपसे त्याज्य माननेको भावनाका संयोजन।
९. अनुभूति द्वारा रसास्वादकी प्रक्रियाका स्थापन ।
इस प्रकार जोइन्दु अपभ्रंशके ऐसे सर्वप्रथम कवि हैं, जिन्होंने क्रान्तिकारी विचारों के साथ भास्मिक रहस्यवादको प्रतिष्ठा कर मोक्षका मार्ग बतलाया है। __ वैदुष्यको दृष्टिसे यह कहा जा सकता है कि इन्होंने कुन्दकुन्द और पूज्यपादके आध्यात्मिक ग्रन्थोंका अध्ययन कर अपने ग्रन्थ-लेखनके लिये विषय-वस्तु ग्रहण की है। पूर्वाचार्योंकी मान्य परम्पराको एक नये रूपमें ही उपस्थित किया है। यही कारण है कि जोइन्दुका प्रभाव अपभ्रशके कवियोंके साथ हिन्दीके सन्त कवियों पर भी पड़ा है। कबीरने जिस क्रान्तिकारी विचारधाराकी प्रतिष्ठा को है, उशका मूल स्रोत जोइन्दुकी रचनामें पाया जाता है ।
विमलसूरि प्राकृतिके चरित-काव्यके रचयिताके रूपमें विमलसूरि पहले कवि और आचार्य हैं। इनसे पूर्व आचार्य यतिवृषभने अपने 'सिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थमें त्रिषष्ठिशलाकापुरुषोंके माता-पिताओंके नाम, जन्मस्थान, जन्मनक्षत्र, आदि प्रमुख तथ्योंका संकलन ही किया था, पर चरितकाज्यके रूपमें उन्होंने कोई ग्रन्थ नहीं लिखा है। आचार्य शिवार्यने भगवती आराधनामें आराधकोंके नाम मात्र ही १. कुमारी एवलिन अवहिल दि मिस्टिक धे--प. १५ । १५४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आघायं-परम्परा