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इस कथासे विदित है कि पात्रकेसरी उच्चकुलीन ब्राह्मण थे। स्वामी समन्तभद्रके 'देवागम' स्तोत्रको सूनकर इनको श्रद्धा जैनधर्मके प्रति जागृत हई थी और जैनधर्ममें दीक्षित हो मुनि हो गये थे। कथाकोषके अनुसार इन्हें 'अहिच्छत्रका निवासी कहा गया है। ये मिल-संघके आचार्य थे । शक संवत् १०५९के बेल्लूर ताल्लुकेके शिलालेख नं० १७ में पानसरोका नाम आया है । इस अभिलेखमें समन्तभद्रस्वामीके बाद पात्रकेसरीको मिल-संघका प्रधान आचार्य सूचित किया है। पात्रकेसरोके अनन्तर क्रमश: वकग्रीव, वननन्दि, सुमतिभट्टारक (देव) और समयदोपक अकलङ्क नामके आचार्य हुए हैं। ___ अकलंकदेवके निश्चयीक किडनेवाले समाई मनन्तवीर्यने उनके 'स्वामी' पदका व्याख्यान करते हुए ही विलक्षणकदर्थनके रचयित्ताके रूपमें पात्रकेसरीका उल्लेख किया है । तत्त्वसंग्रह और उसको टोका पंजिकामें पात्रस्वामीका निर्देश आया है और उनके वाक्योंको उद्धृत किया है।
अतः स्पष्ट है कि पात्रकेसरीका व्यक्तित्व तर्कके क्षेत्र में प्रसिद्ध रहा है । समय-निर्णय
पात्रकेसरीका विलक्षणकदर्थन' नामका ग्रन्थ रहा है । इस ग्रन्थको मीमांसा बौद्ध विद्वान् शान्तरक्षितने अपने तत्वसंग्रह नामक ग्रंथमें की है और शान्तरक्षितका समय ई० सन् ७०५-७६२ है। अतः पात्रकेसरीका समय इसके पूर्व है। डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचायन इनके समयका निर्धारण करते हुए लिखा है-हेतुका विलक्षणस्वरूप दिङ्नागने न्यायप्रवेशमें स्थापित किया है और उसका विस्तार धर्मकीतिने किया है। पात्रस्वामोका पुराना उल्लेख करनेवाले शान्तरक्षित और कणंगामि है । अतः इनका समय दिङ्नाग (ई० ४२५) के बाद और शान्तरक्षितके मध्य में होना चाहिए। ये ई० सन्को छठवीं शताब्दांके उत्तराध और सातवींके पूर्वार्धके विद्वान ज्ञात होते हैं।"
१. तत्.....""स्थेर्थमं सहस्रगुणमाडिसमन्तभद्रस्वामिगलुसम्दर अवीरं बलिकतदीय
श्रीमद् द्रमिल संघाने सरद् अप्पपात्रकेसरि-स्वामी गतिवक्रग्रीवामि'......रिष्द
अनन्तरं ।-एपिग्राफिका कर्णाटिका, जिल्द ५, भाग १ ।। २. नन सदोष तत्, अतस्सवपरिज्ञानमदोषाय इति चेत्, अत्राह–अमलालोकम् .!
कस्य तत् ? इत्यत्राह-स्वामिनः पात्रकेसरिण इत्येके। कुत एतत् ? तेन वहिषय
विलक्षणकदर्थनम्"।-सिद्धिविनिश्चयटीका, जानपीठसंस्करण-पृ. ३७१-७२ । ३. डॉ० बरषारीलाल कोठिया : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमानविधार, पृ० १९५-९६ । ४. सिद्धिविनिश्चय, प्रस्तावना, १० २१ ।
अतषर और सारस्वताचार्य : २३९