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होनेपर भी, छायावादी कविताके समान सकल परमात्माका स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है | काव्यकलाको दष्टिसे पद्य उत्तम कोटिका है.---
जयन्ति यस्यावदतोऽपि भारतीविभूतयस्तीर्थकृतोऽप्यनीहितुः । शिवाय धाने सुगताय विष्णवे जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ।। इच्छारहित होनेपर तथा बोलनेका प्रयास न करनेपर भी जिसको वाणीको विभूति जग्गाको मुख-शान्ति देने में समर्थ है. उस अनेकारी सकल परमात्मा अहंन्तको नमस्कार हो।
बाह्य उदाहरणों द्वारा अन्तरंगकी अनुभूति कराने के लिये आचार्य ने गाढ़वस्त्र, जीर्ण वस्त्र, रक्तवस्त्रके दृष्टान्त प्रस्तुतकर आत्माके स्वरूपको स्पष्ट करनेका प्रयास किया है। जिस प्रकार गाढ़ा-मोटा वस्त्र पहन लेनेपर कोई अपनेको मोटा नहीं मानता, जोर्णवस्त्र पहननेपर कोई अपनेको जीर्ण नहीं मानता और रक्त, पीस, प्रति विभिन्न प्रकारका रंगीन वस्त्र पहननेपर कोई अपनेको लाल, नीला, पीला नहीं समझता, इसी प्रकार शरीरके स्थूल, जीर्ण, गौर एवं कृष्ण होनसे आत्माको भी स्थूल, जीर्ण, काला और गोरा नहीं माना जा सकता है
घने वस्त्रे यथात्मानं न घनं मन्यते तथा । धने स्वदेहेऽप्यास्मान न घनं मन्यते बुधः ।। जीर्ण बस्ने यथाऽऽत्मानं न जीर्ण मन्यते तथा । जीर्ण स्वदेहेऽप्यात्मानं न जोर्ण मन्यते बुधः ।। रक्ते वस्त्रे यथात्मानं न रक्तं मन्यते तथा ।
रक्ते स्वदहेऽप्यात्मानं न रक्तं मन्यते बुधः ।। अनुष्टुप्के साथ वंशस्थ, उपेन्द्रवज्रा आदि छन्दोंका प्रयोग भी किया है । काव्य, दर्शन और अध्यात्मतत्त्वको दृष्टिसे रचनाएँ सुन्दर और सरस हैं।
पात्रकेसरी या पात्रस्वामी कवि और दार्शनिकके रूपमें पात्रकेसरीका नाम विख्यात है ! आचार्य जिनसेनने अपने आदिपुराणमें पात्रकेसरीका उल्लेख करते हुए लिखा है ।
भट्टाकलङ्कश्रीपालपात्रकेसरिणां गुणाः ।
विदुषां हृदयारूढा हारायन्तेऽतिनिर्मलाः ॥ १-२. समाधितन्य ६३ ६६ । ३. आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण--११५३ ।
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : २३७