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इस विवेचनसे आचार्य देवनन्दि-पूज्यपादका समय ई० सन्को छठी शताब्दी सिद्ध होता है, जो सर्वमान्य है। रचनाएँ
पूज्यपाद आचार्य द्वारा लिखित अबतक निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध है१. दशभक्ति २. जन्माभिषेक ३. तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थ मिति ४. समाधितन्त्र ५. इष्टोपदेश ६, जैनेन्द्रव्याकरण ७. सिद्धिप्रिय-स्तोत्र
१. दशभक्ति-जैनागममें भक्तिके द्वादश भेद हैं-(१) सिद्ध-भक्ति, (२) श्रुत-भक्ति, (३) चारित्र-भक्ति, (४) योगि-भक्ति, (५) आचार्य भक्ति, (६) पञ्चगुरुभक्ति, (७) तीर्थकर-भक्ति, (८) शान्ति-भक्ति, (2) समाधि-भक्ति, (१०) निर्वाण-भक्ति, (११) नन्दीश्वर-भक्ति और (१२)चेत्य-भक्ति । पूज्यपाद स्वामोकी संस्कृतमें सिद्ध-भक्ति, श्रुत-भक्ति, चारित्र-भक्ति, योगि-भक्ति, निर्वाण-भक्ति और नन्दीश्वर-भक्ति ये सात हो भक्तियां उपलब्ध हैं। काथ्यको दृष्टिसे ये भक्तियाँ बड़ी ही सरस और गम्भीर हैं । सर्वप्रथम नौ पद्यों में सिद्ध-भक्तिको रचना की गयी है। आरम्भमें बताया है कि आठों कर्मों के नाशसे शुद्ध आत्माकी प्राप्तिका डोना सिद्धि है। इस सिद्धिको प्राप्त करनेवाले सिद्ध कहलाते है । सिद्ध-भक्तिके प्रभावसे साधकको सिद्ध-पदको प्राप्ति हो जाती है । अन्य भक्तियोंमें नामानुसार विषयका विवेचन किया गया है।
२. जन्माभिषक-श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंमें पूज्यपादको कृतियोंमें जन्माभिषेकका भी निर्देश आया है।
दर्तमानमें एक जन्माभिषेक मुद्रित उपलब्ध है । इसे पूज्यपाद द्वारा रचित होना चाहिए । रचना प्रौढ़ और प्रवाहमय है।
३. तत्त्वार्थवृत्ति-पूज्यपादकी यह महनीय कृति है। 'तत्त्वार्थसूत्र' पर गद्यमें लिखो गयी यह मध्यम परिमाणको विशद वृत्ति है। इसमें सूत्रानुसारी सिद्धान्तके प्रतिपादनके साथ दार्शनिक विवेचन भी है। इस तत्त्वार्थवृत्तिको सर्वार्थसिद्धि भी कहा गया है । वृत्तिके अन्तमें लिखा है१. अन शिलालेख-संग्रह, प्रथम भाग, अभिलेख संख्या ४०, पृ० ५५, पद्य-११ ।
अतधर और सारस्वताचार्य : २२५