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वि० संवत् ९९०में देवसेनने दर्शनसार नामक ग्रन्थको रचना की थी। यह अन्य पूर्वाचार्यकृत-गाषाओंको एकत्र कर लिखा गया है । इस ग्रन्थमें बताया है कि पूज्यपादका शिष्य पाहुडवेदी, वजनन्दि, द्राविडसंघका कर्ता हुआ और यह संघ वि. संवत् ५२६ में उत्पन्न हुआ ।
सिरिपुज्जपादसोसो दाविडसंघस्स कारगो दुट्ठो । णामेण वजणंदी पाडवेदी महासत्तो ॥ पंचसए छब्बीसे विपकमरायस्स मरणपत्तस्स ।
दक्षिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो' । बजनन्दि देवनन्दिके शिष्य थे । अतएव द्रविड संघकी उत्पत्तिके उक्तकालसे दस-बीस वर्ष पहले ही उनका समय माना जा सकता है। पंडित नाथूरामजी प्रेमीने पूज्यपाद-देवनन्दिका समय विक्रमको छठी शताब्दीका पूर्वावं माना है। यधिष्ठिर मीमांसकने भी देवनन्दिके समयकी समीक्षा करते हुए इनका काल विक्रमकी छठी शताब्दीका पूर्वाद्ध माना है।
नन्दिसेनको पट्टावली में देवनन्दिका समय विक्रम संवत् २५८-३०८ तक अंकित किया गया है और इनके अनन्तर जयनन्दि, और गुणनन्दिका नाम निर्देश करनेके उपरान्त वजनन्दिका नामोल्लेख आया है। पाण्डवपुराणमें आचार्य शुभचन्द्रने नन्दि-संघको पट्टावलीके अनुसार हो गुर्वावली दी है। देवनन्दि पूज्यपादके गुरुका नाम एक पद्यमें यशोनन्दि बताया गया है । यथा
यशकीत्तिर्यशोनन्दी देवनन्दी महामतिः ।
पूज्यपादापराख्यो यो गुणनन्दी गुणाकरः ॥ अजमेरकी पट्टावलीमें देवनन्दि और पूज्यपाद ये दो नाम पृथक्-पृथक उल्लिखित हैं । इस पट्टावलीके अनुसार देवनन्दिका समय विक्रम संवत् २५८ और पूज्यपादका वि० सं० ३०८ है। यहां पदसंख्या भी क्रमशः १० और ११ है। यह भी कहा गया है कि देवनन्दि पोरवाल थे और पूज्यपाद पद्मावती पोरवाल । पर संस्कृत पट्टावलीके अनुसार दोनों एक हैं, भिन्न नहीं हैं। डॉ० ज्योतिप्रसादने विभिन्न मतोंका समन्वय किया है।' १. दर्शनसार, गाथा २४, २८ २. युधिष्ठिर मीमांसक द्वारा लिखित जैनेन्द्रशम्दानुशासन तथा उसके खिलपाठ
जैनेन्द्रमहावृत्ति, ज्ञानपीठ संस्करण, पृ० ४४ ! ३. अनेकान्त वर्ष १४ किरण ११-१२, प० ३४९ । ४. Jaina Antiquary. Vol. XXI. Page 24. २२४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा