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आचार्यों द्वारा भी अनुभूति हुई । पूज्यपादकी ज्ञानगरिमा और महत्ताका उल्लेख उक्त स्तुतियों में विस्तृत रूपसे आया है ।
उनसे स्पष्ट है कि देवनन्दि-पूज्यपाद कवि और दार्शनिक विद्वानके रूपमें ख्यात हैं ।
जीवन-परिचय
इनका जीवन-परिचय चन्द्रव्य कविक पूज्यपादचार' और देवचन्द्रके 'राजावलिकथे' नामक ग्रन्थोंमें उपलब्ध है | श्रवणबेलगोलाके शिलालेखों में इनके नामोंके सम्बन्धमें उल्लेख मिलते हैं । इन्हें बुद्धिकी प्रखरताके कारण 'जिनेन्द्रबुद्धि' और देवोंके द्वारा चरणोंकी पूजा किये जानेके कारण 'पूज्यपाद' कहा गया है ।
यदीयं ||
यो देवनन्दि- प्रथमाभिधानो बुद्धधा महत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः । श्री पूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं जैनेन्द्र निज-शब्द-भोगमतुलं सर्वार्थसिद्धिः परा सिद्धान्ते निपुणत्वमुद्धकवितां जैनाभिषेकः छन्दस्सूक्ष्मधियं समाधिशतक-स्वास्थ्यं यदीयं विदा माख्याती स पूज्यपाद - मुनिपः पूज्यो मुनीनां गणः ॥
स्वक: 1
अर्थात् इनका मूलनाम देवनन्द था । किन्तु ये बुद्धिकी महत्ताके कारण जिनेन्द्रबुद्धि और देवों द्वारा पूजित होनेसे पूज्यपाद कहलाये थे । पूज्यपादने जैनेन्द्र व्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, जैन अभिषेक, समाषितक आदि ग्रन्थोंको रचना की है।
शिलालेख न० १०५ से भी उक्त तथ्य पुष्ट होता है ।
प्रागभ्यषायि गुरुणा किल्ल देवनन्दी बुद्धया पुनव्यपुलया स जिनेन्द्रबुद्धिः । श्री पूज्यपाद इति चैष बुधैः प्रचख्ये यत्पूजितः पदयुगे वनदेवताभिः ।। पूज्यपाद और जिनेन्द्रबुद्धि इन दोनों नामोंकी सार्थकता अभिलेख नं० १०८ में भी बतायी है ।
इनके पिताका नाम माषवभट्ट और माताका नाम श्रीदेवी बतलाया जाता है। ये कर्नाटकके 'कोले' नामक ग्रामके निवासी थे और ब्राह्मण कुलके
१. जैन शिलालेख संग्रह प्रथम भाथ, माणिकचन्द्र बिगम्बर जैन ग्रन्थभाला, अभिलेख संख्या ४००२४ लोक १०, ११
२. वही, बभिलेवसंख्या १०५ श्लोकसंख्या २० ।
तर और सारस्वताचार्य : २१९