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भूषण थे। कहा जाता है कि बचपन में ही इन्होंने नाग द्वारा निगले गये मेढककी तड़पन देखकर विरक्त हो दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली थी। 'पूज्यपादचरिते' में इनके जीवनका विस्तृत परिचय भी प्राप्त होता है तथा इनके चमत्कारको व्यक्त करनेवाले अन्य कथानक भी लिखे गये हैं, पर उनमें कितना तथ्य है. निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है ।
पूज्यपाद किस संघके आचार्य थे, यह विचारणीय है। "राजावलिकथे'से ये नन्दिसंघके आचार्य सिद्ध होते हैं। शुभचन्द्राचाधने अपने पाण्डवपुराणमें अपनी गुर्वावलिका उल्लेख करते हुए बताथा है
"श्रीमूलसंजनि नन्दिसंघस्तस्मिन् बलात्कारगणोऽतिरम्यः ।। तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाधनन्दी नरदेववन्द्यः ॥' अर्थात्-नन्दिसंघ, बलात्कारगण मूलसंघके अन्तर्गत है । इसमें पूर्वोके एकदेश ज्ञाता और मनुष्य एवं देवोंसे पूजनीय माघनन्दि आचार्य हुए। __ माघनन्दिके बाद जिनचन्द्र, पणनन्दि, उमास्वामी, लोहाचार्य, यशःकीर्ति, यशोनन्दि और देवनन्दिके नाम दिये गये हैं। ये सभी नाम क्रमसे नन्दिसंघकी पट्टावलिमें भी मिलते हैं । आगे इसी गुर्वावलिमें ग्यारहवें गुणनन्दिके बाद बारहवें वनन्दिका नाम आया है, पर नन्दिसंधको पट्टावलिमें ग्यारहवें जयनन्दि और बारहवें गुणनन्दिके नाम आते हैं। इन नामोंके पश्चात तेरहवा नाम वजानन्दिका आता है। इसके पश्चात् और पूर्वको आचार्यपरम्परा गुर्वावलि और पट्टावलिमें प्रायः तुल्य है । अतएव संक्षेपमें यह माना जा सकता है कि पृश्यपाद मूलसंघके अन्तर्गत नन्दिसंघ बलात्कारगणके पट्टाधीश थे । अन्य प्रमाणोंसे भी विदित होता है कि इनका गच्छ सरस्वती था और आचार्य कुन्दकुन्द एवं गुदपिच्छको परम्परामें हुए हैं। कथानुभूति
कहा जाता है कि पूज्यपादके पिता माधवभट्टने अपनी पत्नी श्रीदेवीके आग्रहसे जैन धर्म स्वीकार कर लिया था । श्रीदेवीके भाईका नाम पाणिनि था। उससे भी उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लेनेका अनुरोध किया, पर प्रतिष्ठाको दृष्टिसे वह जेन न होकर मुडीकुण्डग्राममें वैष्णव संन्यासी हो गया। पूज्यपादको कलिनी नामक छोटी बहन थी और इसका विवाह गुण भट्टके साथ हुआ, जिससे गुणभट्टको नागार्जुन नामक पुत्र लाभ हुआ।
एक दिन पूज्यपाद अपनी वाटिका में विचरण कर रहे थे कि उनको दृष्टि १. पाण्डवपुराण, १॥२
२२० : सीकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा